Book Title: Uvavaiya Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 176
________________ अम्ब के भविष्य के भव पडिचारं, चक्कवूहं, गरुलवूहं, सगडवूहं, जुद्धं, णिजुद्धं, जुद्धाइजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, बाहुजुद्धं, लयाजुद्धं, इसत्थं, छरुप्पवाहं, धणुव्वेयं, हिरण्णपागं, सुवण्णपागं, वट्टखेड्डु, सुत्तखेड, णालियाखेड, पत्तच्छेजं, कडवच्छेजं, सज्जीवं, णिज्जीवं, सउणरुय - मिति बावत्तरिकलाओ सेहावित्ता। १६७ भावार्थ- बहत्तर कलाओं के नाम यथा - १. लेख २. गणित ३. रूप ४. नाट्य ५. गीत ६. वादित ७. स्वरगत ८. पुष्करगत ९. समताल १०. द्यूत ११ जनवाद १२. पाशक १३. अष्टापद १४. पौरस्कृत्य १५. उदक- मिट्टियं १६. अन्नविधि १७. पानविधि १८. वस्त्रविधि १९. विलेपनविधि २०. शयनविधि २१. आर्या २२. प्रहेलिका २३. मागधिका २४. गाथा २५. गीतिका २६ श्लोक २७. हिरण्ययुक्ति २८. सुवर्णयुक्ति २९. गन्धयुक्ति ३०. चूर्णयुक्ति ३१. आभरणविधि ३२. तरुणीप्रतिकर्म ३३. स्त्रीलक्षण ३४. पुरुषलक्षण ३५. हयलक्षण ३६. गजलक्षण ३७. गोलक्षण ३८. कुक्कुटलक्षण ३९. चक्रलक्षण ४०. छत्रलक्षण ४९. चर्मलक्षण ४२. दंडलक्षण ४३. असिलक्षण ४४. मणिलक्षण ४५. काकणिलक्षण ४६. वास्तुविद्या ४७. स्कंधारमाण, ४८. नगरमाण ४९. वास्तुनिवेसन ५०. व्यूह - प्रतिव्यूह ५१. चार प्रतिचार ५२. चक्रव्यूह ५३. गरुडव्यूह ५४. शकटव्यूह ५५. युद्ध ५६. नियुद्ध ५७. युद्धातियुद्ध ५८. मुष्टियुद्ध ५९. बाहुयुद्ध ६०. लतायुद्ध ६१. 'इसत्थं छरुप्पवाह' - इषु-शस्त्र, क्षुर - प्रवाह, ६२. धनुर्वेद ६३. हिरण्यपाक ६४. सुवर्णपाक ६५. वट्टखेड्ड-वृत्त खेल ६६. सुत्तखेड्ड- सूत्र - खेल ६७. नालियाखेड्ड-नालिका-खेल ६८. पत्रच्छेद्य ६९. कुडवछेद्य ७०. सजीव ७१. निर्जीव और ७२. शकुनरुत- ये बहत्तर कलाएँ सिखायेंगे। विवेचन - तत्कालीन शिक्षा-पद्धति के तीन अंग बताये हैं। स्मृति के लिये सूत्रात्मक पद्धति से, समझ के विकास के लिये व्याख्यात्मक पद्धति से और दक्षता के लिए प्रयोगात्मक पद्धति से शिक्षा दी जाती थी। Jain Education International सिक्खावित्ता अम्मापिईणं उवणेहि । तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स - अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेहिंति-सम्माणेर्हिति । सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइस्सइ । जाव दलइत्ता पडिविसज्जेहिंति । भावार्थ - तब कलाचार्य उसे माता-पिता के पास ले जायेंगे। तब उस 'दढपइण्ण' के माता-पिता उन कलाचार्य का विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, गन्ध, माल्य और अलंकार से सम्मान करेंगेसत्कार करेंगे। यावत् जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान देंगे। फिर विसर्जन करेंगे। - तण से दढपणे दारए बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्त - पडिबोहिए अट्ठारसदेसी भासाविसारए गीवरई गंधव्वणट्ट - कुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलं भोगसमत्थे यावि भविस्स | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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