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उववाइय सुत्त
भावार्थ - तब वह बहत्तर कला में पण्डित, सुप्त नव अंगों की जागृति वाला, अठारह देश की भाषा में विशारद, संगीत-प्रेमी, गन्धर्व-नाट्य में कुशल, हय(घोड़ा), गज(हाथी) रथ और बाहुयुद्ध का कुशल योद्धा, बाहुओं से प्रमर्दन करने वाला, विकालचारी-रात्रि में भी भ्रमण करने में निर्भय और साहसिक 'दढपइण्ण' बालक पूर्णत: भोगानुभव करने की शक्ति वाला होगा। .
विवेचन - 'नवांग सुप्तप्रतिबोधित' अर्थात् दो कान, दो आँखें, दो घ्राण-नाक, एक जिह्वा, एक त्वचा और एक मन-ये नव अंग, जो बाल अवस्था के कारण सोये हुए-से-अव्यक्त चेतना वाले थे वे जागृत-यौवन से व्यक्त चेतना वाले हुए।
तएणं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो बावत्तरि-कलापंडियं जाव अलं भोगसमत्थं वियाणित्ता, विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहिं लेणभोगेहिं वत्थभोगेहि सयणभोगेहिं उवणिमंतेहिंति।
भावार्थ - तब माता-पिता 'दढपइण्ण' बालक का बहत्तर कला में पण्डित यावत् पूर्ण भोगसमर्थ जान कर, विपुल अन्नभोग-अन्नादि खाने योग्य भोग्य पदार्थ, पानभोग-पानी आदि पीने योग्य पदार्थ, लयनभोग-गृह आदि निवास योग्य पदार्थ, वस्त्रभोग-वस्त्र आदि पहनने योग्य पदार्थ और शयनभोग-शय्या आदि सोने-आराम करने योग्य पदार्थ में जोडेंगे।
तएणं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहि अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सजिहिइ, णो रजिहिइ, णो गिज्झिहिइ, णो मुज्झिहिइ णो अज्झोववजिहिइ।
भावार्थ - वह 'दढपइण्ण' बालक अन्न आदि भोगों में संग-सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा, रागरञ्जित नहीं होगा, अप्राप्त भोगों की आकांक्षा नहीं करेगा और अत्यन्त लीन नहीं होगा।
से जहा णामए उप्पले इवा, पउमे इवा, कुसुमे इवा, णलिणे इवा, सुभगे इवा, सुगंधे इ वा, पोंडरीए इ वा, महापोंडरीए इ वा, सयपत्ते इ वा, सहस्सपत्ते इ वा, सयसहस्सपत्तेइवा, पंके जाए, जलेसंवुड्डेणोवलिप्पइपंकरएणं, णोवलिप्पइजलरएणं, एवमेव 'दढपइण्णे' विदारए कामेहिं जाए, भोगेहिं संवुड्डे, णोवलिप्पिहिइ-कामरएणं, णोवलिप्पिहिइ भोगरएणं, णोवलिप्पिहिइ मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणेणं।
भावार्थ - जैसे उत्पल-नीलकमल, पद्म-पीत कमल, कुसुम-रक्त कमल, नलिन-कुछ कुछ लाल-गुलाबी कमल, सुभग-सुनहरा कमल, सुगन्ध-नील कमल अथवा हरा कमल, पुण्डरीक-सफेद कमल, महापुण्डरीक, शतपत्र-सौ पंखड़ी वाला कमल, सहस्रपत्र हजार पंखड़ी वाला कमल और शतसहस्रपत्र-लाख पंखड़ी वाला, कीचड़ में उत्पन्न हुए और जल में वृद्धि पाए, किन्तु लिप्त नहीं होते हैं, पंक-रज-कीचड़ के सूक्ष्म कणों से-लिप्त नहीं होते हैं जलरज-जल कण से। वैसे ही वह 'दढपइण्ण' बालक भी काम में उत्पन्न हुआ और भोगों में पला, किन्तु लिप्त नहीं होगा कामरज-शब्द
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