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अभिवन्दना के लिए प्रस्थान
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अत्यत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किब्बिसिया करोडिया कारवाहिया संखिया चक्कियाणंगलियामुहमंगलियावद्धमाणापूसमाणवाखंडियगणाताहिंइट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणोभिरामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिजाहिं हिययपल्हायणिजाहिं मिय महुरगंभीरगाहिगाहिं अट्ठसइयाहिं अपुणरुक्ताहिं वग्गूहि जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभिणंदंता य अभिथुणंता य। एवं वयासी-'जय जय णंदा ! जय जय भद्दा ! भदं ते। अजियं जिणाहि जियं च पालेहि। जिय माझे वसाहि।
भावार्थ - चम्पानगरी के मध्य से होकर निकलते हुए कोणिक राजा की बहुत से अर्थार्थी-धनप्राप्ति के अभिलाषी कामार्थी-मनोज्ञ शब्द और रूप की प्राप्ति के अभिलाषी, भोगार्थी- मनोज्ञ गंध, रस और स्पर्श की प्राप्ति के अभिलाषी, लाभार्थी-मात्र भोजनादि के इच्छुक, किल्विषिक-भांड आदि कापालिक, करपीडित, शांखिक-शंख फूंकने वाले, चाक्रिक-चक्र नामक शस्त्र के धारक या कुंभकार, तैलिक आदि, लांगलित-भट्ट विशेष या किसान, मुखमांगलिक-चाटुकार, वर्द्धमान-स्कंधों पर पुरुषों को आरोपित करने वाले, भाट-चारण और छात्र समुदाय के द्वारा इष्ट-वाञ्छित, कान्त, कमनीय-सुन्दर, प्रिय, मनोज्ञ-मन को खींचने वाली। मनोऽम- मन को भाने वाली और मनोऽभिराम-मन में रम जाने वाली वाणी से जय-विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों से लगातार अभिनंदना-आनन्दवर्धक बधाई
और अभिस्तवना-स्तुति की जा रही थी। वे इस प्रकार बोल रहे थे-'हे नन्द ! भुवन में समृद्धि के करने वाले ! तुम्हारी जय हो ! जय हो !' 'हे भद्र ! कल्याणवान् ! या कल्याणकारि ! तुम्हारी जय हो ! जय हो! 'आपका कल्याण हो ! नहीं जीते हुओं को जीतें। जीते हुए व्यक्तियों का पालन करें। जीते हुए व्यक्तियों के बीच में निवास करें।' - इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं, धरणो इव णागाणं, चंदो इव ताराणं, भरहो इव मणुयाणं, बहूई वासाइं, बहूई वाससयाई, बहूई वाससहस्साई, बहूइं वास सयसहस्साई, अणहसमग्गो हट्टतुट्ठो परमाउं पालयाहि। ___ भावार्थ - 'देवों में इन्द्र के समान, असुरों में चमर-इन्द्र के समान, नागों में धरण-इन्द्र के समान, ताराओं में चन्द्र के समान और मनुष्यों में भरत चक्रवर्ती के समान बहुत वर्षों तक, बहुत-सी शताब्दियों तक, बहुत-सी सहस्राब्दियों-हजारों वर्षों तक, बहुत-सी शतसहस्राब्दियों-लाखों वर्षों तक, दोष रहित सपरिवार अति सन्तुष्ट और परमायु अर्थात् उत्कृष्ट आयु भोगें।
इ8 जणसंपरिवुडो चंपाए णयरीए, अण्णेसिं च बहूणं गामा-गर-णयर-खेडकब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टण-आसम-णिगम-संवाह-संणिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं
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