Book Title: Uvavaiya Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 154
________________ भद्रपकृति वाले आदि जीवों का उपपात १४५ की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की होती है। पल्योपम के सामने हजारों वर्षों की स्थिति बहुत अल्प गिनी जाती है। भद्रप्रकृति वाले आदि जीवों का उपपात से जे इमे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु मणुया भवंति। - भावार्थ - ये जो ग्राम, आकर यावत् सन्निवेशों में मनुष्य होते हैं। तंजहा-पगइभद्दगा पगइउवसंता पगइपयणु कोह-माण-माया-लोहा मिउ-मद्दवसंपण्णा अल्लीणा, भद्दगा, विणीया, अम्मापिउ-सुस्सूसगा अम्मापिईणं अणतिक्कमणिजवयणा, अप्पिच्छाअप्पारंभाअप्प-परिग्गहा, अप्पेणंआरंभेणंअप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणा बहई वासाई आउयं पालंति। भावार्थ- यथा-स्वभाव से ही भद्र अर्थात् परोपकार करने वाले, स्वभाव से ही शान्त, स्वभाव से ही क्षणिक या हलके क्रोध, मान, माया और लोभ वाले, कोमल-अहङ्कार रहित स्वभाव वाले, गुरुजनों-बड़ों के आश्रित, विनीत, माता-पिता के सेवक, माता-पिता के वचनों का उल्लंघन नहीं करने वाले, अल्प इच्छा वाले, अल्प आरम्भ वाले, अल्प परिग्रह वाले, अल्प आरम्भ, अल्प • समारंभ-जीवों को परितापित करना और अल्प आरम्भ समारम्भ से आजीविका उपार्जन करने वाले बहुत वर्षों की आयु भोगते हैं। ... पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसिणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? - गोयमा ! चउद्दसवास सहस्साइं ॥७॥ ... भावार्थ - आयुष्य भोग करके काल के समय में काल करके वाणव्यंतर के किसी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होते हैं। हे गौतम ! उनकी चौदह हजार वर्ष की स्थिति है। गतपतिका (प्रोषित भर्तृका) आदि का उपपात सेजाओइमाओगामागर-णयर-णिगम-राय-हाणिखेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु इत्थियाओ भवंति। . - ये जो ग्राम यावत् सन्निवेशों में स्त्रियाँ होती हैं। - तंजहा-अंतोअंतेउरियाओ, गयपइयाओमयपइयाओबालविहवाओछड्डियल्लियाओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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