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उववाइय सुत्त
माइरक्खियाओ पियरक्खियाओ भायरक्खियाओ कुलघरक्खियाओ मित्तणाइ-.. णियय संबंधि रक्खियाओ ससुरकुलरक्खियाओ।
भावार्थ - जैसे-जो अन्तःपुर में रहती हों, जिनके पति परदेश चले गये हों, जो बाल विधवा हों, जिन्हें पतियों ने छोड़ दिया हों, जो माता, पिता या भाई से रक्षित हों, जो कुलगृह-पीहर या श्वशुरकुल-सुसराल से रक्षित हों।
परूढ-णह-के स-कक्ख-रोमाओ ववगयपुप्फगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणगसेय जल्लमलपंकपरितावियाओ ववगयखीर-दहि-णवणीय-सप्यितेल्लगुल-लोणमहुमज्जमंसपरिचत्तकयाहाराओ।
भावार्थ - (विशिष्ट संस्कार के अभाव के कारण) जिनके नख, केश और कांखं के बाल बढ़ गये हों, जो फूल, गंध, माला और अलङ्कारों से रहित हों, जो अस्नान, स्वेद, रज, मल और पङ्क-पसीने से गीले हुए मैल से परितापित हों, जो दूध, दही, मक्खन, घी, तैल, गुड़ और नमक से रहित तथा मधु, मद्य और मांस से रहित आहार का सेवन करती हों।
अप्पिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ, अप्पेणं आरंभेणं, अप्पेणं समारंभेणं, अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ, अकामबंभचेरवासेणं तामेव पइसेनं णाइक्कमइ।
भावार्थ - जिनकी इच्छाएँ अल्प हों, जो अल्प हिंसा वाली हों, जिनका परिग्रह-धनादि का सञ्चय अल्प हो और जो अल्प आरम्भ-हिंसा, अल्प समारम्भ-परिताप और अल्प आरम्भ-समारम्भ से वृत्तिआजीविका करने वाली हों, ऐसी स्त्रियाँ अकाम-निर्जरा की इच्छा के बिना ब्रह्मचर्य के पालन से उसी पति की शय्या का अतिक्रमण नहीं करती हैं अर्थात् अकाम ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई रहती हैं, किन्तु उपपति नहीं करती हैं।
ताओ णं इत्थियाओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ सेसं तं चेव जाव चउसट्ठिवाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता॥८॥
भावार्थ - वे स्त्रियाँ इस प्रकार की चर्या से जीवन व्यतीत करती हैं। अकाम ब्रह्मचर्य का पालन करने से वे वाणव्यंतर देवों में उत्पन्न होती है, वहाँ उनकी चौंसठ हजार वर्ष की स्थिति होती है।
द्वि द्रव्य भोजी आदि का उपपात से जे इमे गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-संण्णिवेसेसु मणुआ भवंति।तं जहा-दगबिइया दगतइया दगसत्तमा दगएक्कारसमा।
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