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भगवान् की पर्युपासना
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पण्हवियाहिं इसिगिणियाहि वासिइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमीलीहिं आरबीहिं पुलंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरुंडीहिं सबरियाहिं पारसीहिं णाणादेसीविदेसपरिमंडियाहिं इंगियचिंतियपत्थिय (इंगियचिंतियपत्थियमणोगय) विजाणियाहिं सदेस-णेवत्थग्गहियवेसाहिं चेडिया चक्कवालवरिसधर-कंचुइज्जमहत्तरगवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ णिग्गच्छंति। ___ भावार्थ - फिर बहुत-सी कुब्जाओं, चेटिकाओं, वामनियों, वडभियों, बब्बरी, पयाउसिया, जोणिया, फ्ण्हविया, इसिगिणिया वासिइणिया, लासिया, लउसिया, सिंहली, दमिली, आरबी, पुलंदी, पक्कणी, बहली, मुरुंडी, सबरी और पारसी-इन नाना देश-विदेश की निवासिनियों-जो कि अपनी स्वामिनी के इंगित-मुखादि के चिह्न, या चेष्टा, चिन्तित-सोची हुई बात और प्रार्थित-अभिलषित मनोगत बात की जानकार थीं, जो अपने अपने देश की वेशभूषा को पहने हुए थी, उन चेटियों के समूह वर्षधर-नाजर, कृत नपुंसक, कंचुकीय-अन्त:पुर के रक्षक और महत्तरग-अंत:पुर के रक्षकों के अधिकारी से घिरी हुई, अन्तःपुर से निकली। , अंतेउराओ णिग्मच्छित्ता जेणेव पाडिएक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छति।उवागच्छित्ता पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाइंदुरूहंति।
भावार्थ - जहां प्रत्येक रानियों के लिये यान खड़े थे, वहां आयीं और जुते हुए यात्राभिमुख यानों पर सवार हुई।
दुरूहित्ता णियगपरियाल सद्धिं संपरिवुडाओ चंपाए णयरीए मज्झमझेणं णिग्गच्छंति।णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति। __ 'भावार्थ - अपने परिवार से घिरी हुई चम्पानगरी के मध्य से होकर निकली। जहां पूर्णभद्र उद्यान था, वहां आयी।
उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताइए तित्थयराइसेसे पासंति। पासित्ता पाडिएक्क पाडिएक्काइं जाणाई ठवंति। ठवित्ता जाणेहितो पच्चोरुहंति। ___ भावार्थ - दृष्टि योग्य स्थान से श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तीर्थकरत्व सूचक छत्रादि अतिशय देखे। तब यानों को ठहराये और उनसे नीचे उतरीं। _जाणेहिंतो पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति। तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति।तं जहा- १ सच्चित्ताणंदव्वाणं विउसरणयाए २ अच्चित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए ३ विणओणयाए गायलट्ठीए ४ चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं ५ मणसो एगत्तीकरणेणं।
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