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भगवान् के पास जनसमूह का गमन
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अन्वय-व्यतिरेक हेतु, कारण-तर्क संगत या युक्तियुक्त व्याख्या और व्याकरण-दूसरों के द्वारा पूछे गये अर्थों के उत्तर पूछेगे'____ अप्पेगइया सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता, अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहि धम्म पडिवग्जिस्सामो, अप्पेगइया जिण भत्तिरागेणं, अप्पेगइया जीयमेयं, त्ति कट्ट ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोऊयमंगलपायच्छित्ता, सिरसा-कंठेमालकडा आविद्ध-मणिसुवण्णा कप्पियहारद्धहारतिसरय-पालंब-लंबमाणकडिसुत्तय-सुकय-सोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा।
भावार्थ - कई-'सभी से अपने सब भांति के सम्बन्धों का विच्छेद करके, गृहवास से निकलकर, अनगारधर्म को स्वीकार करेंगे' या पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप गृहिधर्म-श्रावक धर्म को स्वीकार करेंगे, कई जिनभक्ति के राग से और कई-'यह जीत व्यवहार-दर्शन करने को जाना-हमारी वंश-परंपरा का व्यवहार है'- इस प्रकार विचार करके स्नान किया, बलिकर्म (अर्थात् तेल मालिश, उबटन आदि स्नान सम्बन्धी सारा कार्य) कौतुक और मंगल रूप प्रायश्चित्त करके, सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित हुए। उन्होंने शिर पर और कण्ठ में मालाएँ धारण की। मणि-सुवर्ण जडित अलंकार पहनें। सुन्दर हार, अर्द्धहार, तीन लडियों वाले हार, कटिसूत्र और अन्य भी शोभा बढ़ाने वाले आभरण धारण किये। देह के अवयवों पर चन्दन का लेप लगाया।
__ अप्पेगइया हयगया, एवं गयगया रहगया जाण-गया जुग्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया सिवियागया संदमाणियागया, अप्पेगइया पायविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उक्किट्ठ-सीहणायबोल-कलकलरवेणं पक्खुब्भियमहासमुद्दरवभूयंपिव करेमाणा पायदइरेणं भूमिं कंपे-माणा अंबरतलमिव फोडेमाणा एगदिसिं एगाभिमुहा। ___ भावार्थ - कई घोड़े पर बैठे। इसी प्रकार हाथी, रथ, यान अर्थात् गाड़ी पर बैठे हुए, युग्य अर्थात् गोल्लदेश में प्रसिद्ध पालखी जो कि दो हाथ प्रमाण चार कोने वाली वेदिका से सुशोभित, गिल्लि अर्थात् हाथी पर रखे हुए अम्बाड़ी के समान सवारी, थिल्लि अर्थात् लाट देश में प्रसिद्ध पालखी विशेष, प्रवहन अर्थात् वेगसर नाम की सवारी शिविका-कूटाकार ढंकी हुई पालखी और स्यंदमाणिका-पुरुष प्रमाण लम्बी पालखी पर सवार हुए,तो कई पैदल ही चारों ओर पुरुषों से घिरे हुए, आनन्द-महाध्वनि, सिंहनाद, बोल और कलकल महान् शब्द से सारी नगरी को, घोष से युक्त क्षुभित महासमुद्र के तुल्यसी करते हुए एवं पैरों से धरती को कम्पित करते हुए तथा आकाश को स्फुटित करते हुए जिधर भगवान् विराजते थे उस दिशा की तरफ मुख करके चले।
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