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देवों का शरीर और शृङ्गार
दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार जाति के भवनवासी देव प्रकट हुए। उनके यथा स्थान से विचित्र- विविध चिह्न नियुक्त थे यथा - १. नागफण २. गरुड ३. वज्र ४. पुण्यकलश ५. सिंह ६. अश्व ७. हाथी ८. मगर और ९. वर्द्धमानक- शराव चिह्न से अङ्कित मुकुट थे । वे सुरूप महर्द्धिक आदि असुरकुमार देवों के वर्णन के समान है, यहाँ तक "पर्युपासना कर रहे थे।'
विवेचन - नागकुमार देवों के मुकुट में नाग की फना का चिह्न होता है, सुवर्णकुमार के मुकुट में गरुड का, विद्युतकुमार के मुकुट में वज्र का अग्निकुमारों के पूर्ण कलश का, द्वीपकुमारों के सिंह का, उदधिकुमारों के घोड़े का, दिशाकुमारों के हाथी का, पवनकुमारों के मगर का और स्तनितकुमारों के वर्द्धमान स्वस्तिक का चिह्न होता है। ये सब चिह्न इन देवों के मुकुटों में होते हैं।
"यहाँ असुरेन्द्र को छोड़कर " कहा है। इसका आशय यह है कि असुरकुमार जाति के देवों का वर्णन पहले आ चुका है।
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वाणव्यंतर देवों का वर्णन
२४ - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था ।
भावार्थ - उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप, बहुत से वाणव्यन्तर देव प्रकट हुए।
पिसाया १, भूयाय २, जक्ख ३, रक्खस ४, किंनर ५, किंपुरिस ६, भुयगवइणो महाकाया ७, गंधव्वणिकायगणा (गंधव्व पड़ गणा) णिउण गंधव्व गीयरइणो ८, अणपणिय ९, पणपणिय १०, इसिवाइय ११, भूयवाइय १२, कंदिय १३, महाकंदिया
१४, कुहंड १५, प य १६, देवा ।
भावार्थ- वाणव्यन्तर देव निम्नलिखित जाति के थे - १. पिशाच, २. भूत, ३. यक्ष, ४. राक्षस, ५. किन्नर, ६. किंपुरुष, ७. महाकाय महोरग, ८. अति ललित गंधर्व नाट्य गीत और गीत- नाट्य वर्जित गेयगीत या संगीत में रति- आसक्ति - प्रीति रखने वाले गंधर्वनिकाय - गंधर्व जाति के गण, ९. अणपण्णिय, १०. पणपण्णिय, ११. ऋषिवादिक, १२. भूतवादिक, १३. क्रंदित, १४. महाक्रन्दित, १५. कुष्माण्ड और १६. प्रयत देव ।
चंचल-चवल-चित्त- कीलण दव-प्पिया गंभीर - हसिय- भणिय-पीय-गीय
णच्चण-रई।
भावार्थ- वे देव चञ्चल - चपल - अति चञ्चल चित्तवाले, क्रीड़ा और परिहास प्रिय थे। उन्हें Safaा प्रयोग प्रिय था। वे गीत और नृत्य में रतिवाले - आसक्त थे ।
वणमाला मेल -मउड - कुंडल - सच्छंद - विउव्विया - भरण- चारू - विभूसण-धरा
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