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उववाइय सुत्त
णेसजिए दंडायए लगडसाई आयावए, अवाउडए, अकंडुयए धुय केस मंसु लोमे अणिट्ठहए सव्व-गाय-परिकम्म-विभूस-विप्पमुक्के।से तं कायकिलेसे।
भावार्थ - ५ निषद्या-पुढे टिकाकर या पलाठी से बैठने वाले, दण्डायतिक-दण्डे की तरह सीधा लम्बा होकर स्थित रहना। लकुटशायी - टेडी लकड़ी के समान सोना (स्थित रहना अर्थात् मस्तक को तथा दोनों पैरों की एड़ियों को जमीन पर टिकाकर शरीर के मध्य भाग को ऊपर उठाकर सोना ऐसा करने से शरीर टेडी लकड़ी की तरह टेड़ा हो जाता है) ६. आतापना अर्थात् शीतादि से देह को तापित करने वाले ७. शरीर को वस्त्रादि से नहीं ढकने वाले ८. नहीं खुजालने वाले ९. नहीं थूकने वाले और १०. शरीर के सभी संस्कारों और विभूषा से मुक्त रहने वाले भगवान् के शिष्य थे। यह कायक्लेश का स्वरूप है।
विवेचन - आतापना के तीन भेद हैं - १. उत्कृष्टा अर्थात् निष्पन्न (सोये हुए व्यक्ति की) आतापना २. मध्यमा अर्थात् अनिष्पन्न (बैठे हुए व्यक्ति की) आतापना ३. जघन्या अर्थात् ऊर्ध्वस्थित (खड़े हुए व्यक्ति की) आतापना। इनके भी तीन-तीन भेद हैं। यथा - निष्पन्न-१. अधोमुखशायिता (औंधे मुख से सोकर ली जाने वाली) और २. पार्श्वशायिता-करवट से सो कर ली जाने वाली और ३. उत्तानशायिता (पीठ के बल-सीधे सोकर ली जाने वाली) आतापना। अनिष्पन्न - १. गोदोहिका (गाय दूहने की स्थिति में बैठकर ली जाने वाली) २. उत्कुटुकासनता (दोनों पैरों पर बैठकर ली जाने वाली) और ३. पर्यङ्कासनता (पलाठी से बैठकर ली जाने वाली) आतापना और ऊर्ध्वस्थित१. हस्तिशौण्डिका (दोनों कूल्हों को जमीन पर टिका कर बैठना और फिर एक पैर हाथी की सूंड की तरह ऊंचा रखना) २. एकपादिका (एक पैर से खड़े रहकर ली जाने वाली) और ३. समपादिका (सीधे खड़े रहकर ली जाने वाली) आतापना।
से किं तं पडिलीणया ? पडिसंलीणया चउव्विहा पण्णत्ता। तं जहा-इंदियपडिसलीणया, कसाय-पडिसंलीणया, जोग-पडिसंलीणया, विवित्त-सयणासणसेवणया।
भावार्थ - प्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? प्रतिसंलीनता के चार भेद कहे गये हैं। जैसे-१. इन्द्रियप्रतिसंलीनता - इंद्रियों की चेष्टाओं को रोकना २. कषायप्रतिसंलीनता - क्रोधादि कषायों को रोकना ३. योगप्रतिसंलीनता - योगों की प्रवृत्ति को रोकना और ४. विविक्त-शयनासन-सेवनता-स्त्री, पशु, पंडक (नपुंसक) रहित एकान्त स्थान में रहना।
से किं तं इंदिय-पडिसंलीणया ? इंदिय-पडिसंलीणया पंचविहा पण्णत्ता। भावार्थ - इन्द्रियप्रतिसंलीनता किसे कहते हैं ? इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता के पांच भेद कहे गये हैं।
तं जहा-सोइंदिय-विसय-पयार-णिरोहो वा, सोइंदिय-विसयपत्तेसु अत्थेसु रागदोस-णिग्गहो वा।
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