Book Title: Uvavaiya Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 53
________________ ४४ - महासिंहनिष्क्रीडित तप एक दिन का उपवास, दो दिन और एक दिन का उपवास, इसी प्रकार क्रमशः सोलह दिन और पन्द्रह दिन के उपवास और सोलह दिन के उपवास - चतुस्त्रिंशत्तम एवं तीस भक्त-बत्तीस भक्त– १४ और १५ दिन के उपवास इसी प्रकार क्रमशः चतुर्थ - षष्ठ और चतुर्थ तक उतरना । उववाइय सुत्त एक परिपाटी का काल - १ वर्ष ६ महीने और १८ दिन । चार परिपाटियों का काल - ६ वर्ष २ महीने और १२ दिन । पारणक-विधि पूर्ववत् । भद्दपडिमं महाभद्दपडिमं सव्वओभद्दपडिमं आयंबिलवद्धमाणं तवोकम्मं पडिवण्णा । भावार्थ - कई अनगार भद्रप्रतिमा, महा भद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा और आयम्बिल-वर्द्धमान तप कर्म करने वाले थे । विवेचन - भद्रप्रतिमा - पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में मुख रखकर, क्रमशः प्रत्येक दिशा में चार-चार पहर तक ध्यान करना। यह प्रतिमा - अभिग्रह विशेष रूप प्रतिज्ञा दो दिन की है। महाभद्र प्रतिमा- इसमें क्रमशः प्रत्येक दिशा में एक-एक अहोरात्रि तक कुल चार अहोरात्र तक कायोत्सर्ग किया जाता है। सर्वतोभद्र प्रतिमा - इस प्रतिमा की दो विधियाँ १. क्रमशः दश दिशाओं में मुख करके, एक-एक अहोरात्रि तक कुल दश अहोरात्रि तक - कायोत्सर्ग करना २. दूसरी विधि के अनुसार इस प्रतिमा के दो भेद हैं- लघु और महा । लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा (जिस स्थापना में चारों ओर से अंकों की गिनती करने पर जोड़ बराबर आये उसे सर्वतोभद्र कहते हैं ।) इस तप में क्रमश: चतुर्थ से लगाकर द्वादशम-पांच दिन के उपवास तक चढ़ते हैं। फिर मध्य के कोष्ठक में आये हुए अङ्क को आदि में रखकर, शेष चार पंक्तियाँ पूरी की जाती है। - एक परिपाटी का कालमान- ७५ दिन तपश्चर्या और २५ पारणक। तीन महीने १० दिन । चार परिपाटियों का कालमान- १ वर्ष, १ महीना और १० दिन । Jain Education International पारणक विधि पूर्ववत् । महासर्वतोभद्र प्रतिमा - क्रमशः ७ अङ्क तक की तपश्चर्या । मध्य कोष्ठक गत अङ्ग को आदि में रख कर, अगली - अगली पङ्कितयों का निर्माण । एक परिपाटी का कालमान- ८ महीने और ५ दिन । चारों परिपाटियों का कालमान- २ वर्ष, ८ महीने, २० दिन । आयम्बिल वर्द्धमान जिसमें रांधा हुआ या भुना हुआ अचित्त अन्न, पानी में भिगो कर एक बार खाया जाता है, उसे आयम्बिल नामक तप कहा जाता है। इस तप की विधि इस प्रकार है - एक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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