________________
४६
उववाइय सुत्त
स्थिति होती है उस आसन से बैठना या आम्रकुब्जासन (आम्रफल वत् वक्राकार स्थिति में बैठना) से रहना।
अहोराइंदियं (राइंदियं) भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, इक्कराइंदियं (एगराइयं) भिक्खु-पडिमं पडिवण्णा।
भावार्थ - कई निर्ग्रन्थ एक रात और एक दिन की भिक्षु प्रतिमा के धारक थे और कई एक रात की भिक्षु प्रतिमा के धारक थे।
विवेचन - अहोरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा - इस प्रतिमा में चौविहार षष्ठोपवास-दो दिन के उपवास किया जाता है। इस प्रतिमा का आराधक गांव के बाहर रहकर इसकी आराधना करता है और प्रलम्बभुज-दोनों हाथों को लटकते हुए स्थिर रखना-अवस्था में स्थित रहता है।
एक रात्रिकी भिक्षु प्रतिमा - इस प्रतिमा की आराधना चौविहार अष्टमभक्त-तीन दिन के .. उपवास के द्वारा की जाती है। इसका आराधक भी ग्रामादि के बाहर ही रहता है। जिनमुद्रा-दोनों पैरों के बीच चार अंगुल का अन्तर रखते हुए, सम अवस्था में खड़े रहना, प्रलम्बभुज-लटकते हुए स्थिर हाथ, अनिमिषनयन- पलके झपकाने से रहित स्थिति-एक टक, एक पुद्गल निरुद्धदृष्टि- किसी एक पुद्गल पर दृष्टि लगाना और कुछ झुके हुए शरीर से स्थित रहकर एक रात तक इसकी आराधना की । जाती है।
विशिष्ट संहनन आदि से युक्त व्यक्ति ही इन प्रतिमाओं की आराधना कर सकता है। कहा है - पडिवज्जइ एयाओ, संघयणधिइजुओ महासत्तो। पडिमाउ भावियप्या, सम्मं गुरुणा अणुण्णाओ॥
संहनन - शारीरिक बल और धृति-धैर्य-आत्मिकबल से युक्त महासत्त्वशाली-अतिशय पराक्रमी सम्यक् रूप से भावित आत्मा-संयम के संस्कारों से युक्त या संयम में तल्लीन शुद्ध आत्मा और गुरु के द्वारा अनुज्ञात-जिसे आज्ञा मिल गई हो या जिसे अधिकार प्राप्त हो ऐसा व्यक्ति इन प्रतिमाओं को स्वीकार करता है।
बारह भिक्षु प्रतिमा का विस्तृत वर्णन दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा में है। ये बारह ही प्रतिमाएँ शेष काल के ८ महीनों में पूरी हो जाती है। पहली से लेकर सातवीं प्रतिमा तक सात महीने में पूरी हो जाती है, आगे की पांच प्रतिमाएं आठवें महीने में पूरी हो जाती हैं। सात-सात दिन की तीन प्रतिमाओं के इक्कीस दिन होते हैं, बाईसवें दिन पूर्व प्रतिमा के उपवास का पारणा कर तेईसवें और चौईसवें दिन बेला की तपस्या कर के ग्यारहवीं प्रतिमा का पालन किया जाता है, पच्चीसवें दिन बेले का पारणा करके छब्बीसवें, सत्ताईसवें और अट्ठाईसवें दिन तेला किया जाता हैं, उनतीसवें दिन तेले का पारणा करके बारह ही प्रतिमा पूर्ण कर दी जाती है। इस प्रकार मिकसर की एकम से प्रतिमाएँ प्रारम्भ करके आषाढ़ी पूनम के पहले दिन पूर्ण कर दी जाती है और फिर चातुर्मास लग जाता है। चातुर्मास में ये भिक्षु प्रतिमाएं अंगीकार नहीं की जाती है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org