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कोणिक राजा का वर्णन
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और आक की रूई के समान मृदु-कोमल था। सिंहासन के समान आकार था। चित्त प्रसन्नकारक, दर्शनीय, सुन्दर और मन से भुलाया न जा सके वैसा वह था।
कोणिक राजा का वर्णन ६- तत्थ णं चंपाए णयरीए कूणिए णामं राया परिवसइ। महया-हिमवंतमहंत-मलय-मंदर-महिंद-सारे, अच्चंत-विसुद्ध-दीह-रायकुल-वंस-सुप्पसूए, णिरंतरं राय-लक्खण-विराइअंगमंगे बहुजण-बहुमाण पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए, मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ-सुजाए।
भावार्थ - उस चम्पा नगरी में कोणिक नाम का राजा रहता था। वह महाहिमवान् पर्वत के समान महान् और मलय, मेरु और महेन्द्र पर्वत के समान प्रधान था। अत्यन्त विशुद्ध, चिरकाल से राजकुल के रूप में प्रख्यात वंश में उसका जन्म हुआ था। उसके अंग सभी राजलक्षणों से सुशोभित थे। बहुत-से मनुष्य उसका बहुमान करते थे-पूजा करते थे। क्योंकि वह सभी गुणों से समृद्ध था-आक्रमण से जनता को बचाने वाला क्षत्रिय था और वह हमेशा प्रसन्न चित्त रहता था। वैधानिक रूप से राजा स्वीकार किया जा चुका था तथा अपने माता-पिता का योग्य पुत्र था-विनीत था।
दयपत्ते, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे खेमंधरे, मणुस्सिदे, जणवयपिया जणवयपाले, जणवय-पुरोहिए, सेउकरे, केंउकरे, णरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुस्सिवम्बे पुरिसासीविसे-पुरिसपुंडरीए पुरिसवर-गंधहत्थी, अड्डे दित्ते वित्ते, विच्छिण्ण-विउलभवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे बहुधण-बहुजाय-रूव-रयए आओग-पओग-संपउत्ते, विछड्डिअ-पउर-भत्तपाणे. बहु-दासी-दास-गो-महिसगवेलग-प्पभूए पडिपुण्ण जंत-कोस-कोट्ठागाराउधागारे
कठिन शब्दार्थ - दयपत्ते - करुणा युक्त, सीमंकरे - सीमाकारी-सीमा बांधने वाला, सीमंधरे - स्वयं मर्यादा का पालन करने वाला, खेमंकरे - प्रजा में क्षेमकुशल बर्ताने वाला, खेमंधरे - प्रजा में आप स्वयं उपद्रव नहीं करने वाला, मणुस्सिंदे - मनुष्यों में इन्द्र के समान, जगवय-पुरोहिए - देश में शान्ति बताने वाला, सेउकरे - मार्गदर्शक, केउकरे - अद्भूत कार्य करने वाला।
भावार्थ - उसमें करुणा प्रमुख कोमल गुणों का विकास था वह मर्यादा का कर्ता, की हुई मर्यादा का पालक, उपद्रव रहित अवस्था को बनाने वाला और प्राप्त हुई निरुपद्रव दशा का योग्य साधनों से स्थिर कर्ता था। परम ऐश्वर्य के कारण मनुष्यों में इन्द्र के समान था। जनता के हित का इच्छुक होने के कारण देश का पिता, रक्षक होने के कारण देश का पालक, शान्ति करने के कारण देश का पुरोहित,
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