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कोणिक राजा का परोक्ष वन्दन
अर्थ- सम्पूर्ण ऐश्वर्य रूप, यश, श्री (लक्ष्मी), धर्म और प्रयत्न, इन छह को 'भग' कहते हैं। आदिकर (आइगर) - आचारादि श्रुतधर्म सम्बन्धी अर्थ की आदि (प्रारंभ) के करने वाले । तीर्थङ्कर - जिसके द्वारा संसार समुद्र से तिरा जाय उसको तीर्थ अर्थात् प्रवचन कहते हैं । प्रवचन के धारक होने के कारण चतुर्विध संघ को भी तीर्थ कहते हैं । उस तीर्थ की स्थापना करने वाले को 'तीर्थंकर' कहते हैं।
स्वयं संबुद्ध - बिना किसी के उपदेश के स्वयं बोध को प्राप्त होने वाले ।
पुरुषोत्तम - संसार के सभी पुरुषों में अतिशयादि से उन्नत उत्तमोत्तम ।
पुरुषसिंह - सिंह उत्कृष्ट शौर्यवान माना जाता है, उसी प्रकार पुरुषों में शौर्यादि गुणों में सिंह के
समान ।
पुरुषवर पुण्डरीक जिस प्रकार पुण्डरीक कमल हजार पंखुड़ियों वाला निर्मल श्वेत रंग का श्रेष्ठ पुष्प होता है, उसी प्रकार सभी प्रकार के अशुभ मल से रहित और सभी शुभभावों-निर्मलताओं से युक्त ।
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पुरुषवर गंधहस्ती - हाथियों में गंधहस्ती ऐसा होता है कि जिसकी गंध से दूसरे सभी हाथी भाग जाते हैं, उसी प्रकार गंध हस्ती की तरह श्रेष्ठ पुरुष, जिनके विहार क्षेत्र के ईति - धान्यादि की फसलों को हानि पहुँचाने वाले चूहे टीढ़ आदि, भीति - परचक्र भय, दुर्भिक्ष दुष्काल, लूटपाट आदि और महामरी, महारोग आदि व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। गंध हस्ती की गंध से दूसरे हाथी मद रहित हो जाते हैं। इसी प्रकार जो अन्यतीर्थिक भगवान् के साथ चर्चा करने के लिए आते हैं, भगवान् को देखते ही उनका अभिमान नष्ट हो जाता है और वे भगवान् के भक्त बन जाते हैं ।
लोकोत्तम - लोक के सभी प्राणियों में परम उत्तम ।
लोकनाथ - 'योग' क्षेम कृन्नाथः अप्राप्तस्य प्रापणंयोगः प्राप्तस्य रक्षणं क्षेमः ॥
अर्थ- जो सम्यग् दर्शन (समकित ) आदि गुण प्राप्त नहीं हुए उन्हें प्राप्त करवाना योग कहलाता है । प्राप्त हुए सम्यग्दर्शन आदि गुणों की रक्षा करना एवं उन्हें निरतिचार पालन करवाना क्षेम कहलाता है। इस प्रकार योग और क्षेम करने वाले को 'नाथ' कहते हैं। संसार के समस्त प्राणियों के नाथ अर्थात् अनाथों को नाथ बनाने वाले ।
लोकहितंकर - लोक का हित करने वाले, लोक के जीवों को शाश्वत सुख प्राप्त करवाने में उत्कृष्ट सहायक ।
लोक प्रदीप जीवों के हृदय में भरे हुए अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर कर ज्ञान का दीपक प्रकटाने वाले उत्तम प्रदीप ।
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लोक प्रद्योतकर - सूर्य के समान । समस्त लोक और अलोक के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले। जीव अजीव आदि तत्त्वों के भेद प्रभेद के रहस्य को प्रकट करने वाले।
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