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( कुंडलोल्लिहिय पीणगंडलेहा ) कोमुइ-रयणियर विमल पडिपुण्ण- सोम-वयणा, सिंगारागार - चारुवेसा, संगय-गय- हसिय- भणिय-विहिय-विलास- सललिय-संलावणिउण- जुत्तोवयार- कुसला (सुंदर थणजघणवयण- करचरण - णयण - लावण्ण विलास कलिया) पासाईया दरिसणिजा अभिरुवा पडिरूवा
उववाइय सुत्त
कोणिएणं रण्णा भंभसार पुत्तेणं सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सह-फरिस - रसरूव- गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुब्भवमाणी विहरइ ।
कठिन शब्दार्थ- कोमुड़ कौमुदी - कार्तिक पूर्णमासी, रयणियर रजनीचर।
भावार्थ - उसकी कमर करतल-परिमित अर्थात् मुट्ठी में आवे इतनी पतली थी और मध्यभाग प्रशस्त : त्रिवली पेट पर पड़ने वाली मुडी हुई तीन रेखाओं से युक्त थी। कुण्डलों के द्वारा जिसके कपोलों-गालों की रेखा सतेज हो गई थी। मुख शरदपूनम के चांद के समान विमल, परिपूर्ण और सौम्य था । श्रृंगार रस के आगार-घर के समान सुन्दर वेश था। उसकी चाल, हंसी, बोली, अंगचेष्टा और आँखों की चेष्टा संगत• उचित थी । वह प्रसन्नता से युक्त वार्तालाप करने में निपुण थी और योग्य लोकव्यवहार में दक्ष थी । अतः वह चित्त के लिए आकर्षक, नयनाभिराम और सौन्दर्य की प्रतिमा थी- मन में उसकी सौम्यमूर्ति अङ्कित हो जाती थी। वह भंभसार - श्रेणिक के पुत्र कोणिक राजा के साथ बहुत ही प्रीति रखती थी- राजा द्वारा अप्रिय प्रसंग आने पर भी विरक्त नहीं होती थी और इष्ट शब्द-संगीत आदि, रूप-नाटक आदि, गंध-फूल, इत्र, धूप आदि, रस- खाद्य पदार्थ और स्पर्श - वस्त्राभूषण, मकान शय्या, मर्दन, शीत-उष्णता की अनुकूलता आदि, ये पांच तरह के मनुष्य सम्बन्धी काम-भोगों को बारबार भोगती हुई रहती थी ।
कोणिक राजा की भगवद्भक्ति
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८ - तस्स णं कोणिअस्स रण्णो एक्के पुरिसे विउल-कय-वित्तिए भगवओ पवित्तिवाउए, भगवओ तद्देवसिअं पवित्तिं णिवेएइ । तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिण्ण- भति-भत्त-वेयणा भगवओ पवित्तिवाडया भगवओ तद्देवसिअं पवित्तिं णिवेदेंति ।
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कठिन शब्दार्थ - पवित्तिवाडए - प्रवृत्तिव्यापृत- प्रवृत्ति को निवेदन करने वाला ।
भावार्थ - उस कोणिक राजा ने भगवान् की विहारादि प्रवृत्ति को जानने के लिये एक पुरुष को विपुल वृत्ति-आजीविका देकर नियुक्त किया था, जो भगवान् की उस दिन सम्बन्धी प्रत्येक दिन की प्रवृत्ति का उससे निवेदन करता था । उस पुरुष के भी बहुत-से अन्य पुरुष भगवान् की प्रवृत्ति के निवेदक थे, जिन्हें दैनिक आजीविका और भोजन रूप वेतन देकर नियुक्त कर रखे थे। वे उसे भगवान् की प्रतिदिन की प्रवृत्ति के समाचार देते थे।
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