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अनतिचारी व्रती का अन्य लक्षण
उत्तमखमागभीरो दोसचयं खिप्पदे विभंगेहिं । जो सीलसायरो खलु सीलवदे अणइचारो सो॥७॥
शील महासागर लहराता क्षमाभाव से अति गंभीर नित उत्ताल तरंगों से जो दोष फेंकता बाहर धीर। आतम रत्नाकर गुण-वैभव पर संयोग दोष का धाम यह विचार करशील व्रतो में निरतिचार करता आराम॥७॥
अन्वयार्थ : [ जो ] जो [उत्तमखमा गभीरो ] उत्तम क्षमा से गंभीर है [ दोसचयं ] दोषों के समूह को [ विभंगेहिं ] विशेष तरीकों से [ खिप्पदे ] दूर करता है [ सीलसायरो] शील का सागर है [ सो] वह [ खलु ] निश्चित ही [सीलवदे] शीलव्रतों में [अणइचारो] अतिचार रहित है।
भावार्थ : जिसके पास उत्तम क्षमा धारण करने की क्षमता है, वह बहुत सहनशील और गंभीर होता है। उत्तम क्षमा धारी नियम से गंभीर व्यक्तित्व का धनी होता है। अनेक तरीकों से जैसे आलोचना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, भक्ति आदि के द्वारा जो अपने दोषों का नाश करता है, जो शील धारण करने में सागर समान गंभीर है वह शील, व्रतों में अतिचार रहित होता है।
बड़े-बड़े महापुरुषों के पास ऐसी उत्तम क्षमा रहती थी तभी तो वह अपने वैरी से पीड़ित होने पर भी क्षुब्ध नहीं होते थे। शत्रु तो नाक, भौं मोड़कर कषाय भाव से हानि पहुंचाता है किन्तु महापुरुष उस समय पर मात्र उस विपत्ति को देखते हैं और उसी से निपटते हैं। उनके मन में शत्र के इन क्षुद्र छलों से भी कोई पीडा नहीं होती है।
भोले आत्मन् ! तेरे साथ कोई एक बार छल करे और तुझे पता पड़ जाय तो तुम कितने कषायवान् हो जाते हो। बीसों लोगों से उसके छल और दुर्व्यवहार का ढिंढोरा पीटते हो। उससे डरते भी हो और दूसरों से कहकर अपना सुरक्षा कवच भी तैयार करते हो।
याद करो! पाण्डवों की गंभीरता और क्षमाभाव। जब पहली बार लाक्षागृह में आग लगा कर मार डालने की कोशिश दुर्योधन ने की तो पाण्डव बच निकले। बहुत समय बाद पाण्डव-दुर्योधन आदि मिल गए। पाण्डव फिर से दुर्योधन के साथ निडर होकर रहने लगे। दुर्योधन अपने छल-प्रपञ्चों से उन्हें राज्य अधिकार से वंचित करना चाहता था। सो उसने हुँआ खेलने के बहाने युधिष्ठिर को बैठा लिया। धीरे-धीरे छल से पूरी सम्पत्ति जीत ली। पुनः पाण्डवों को बनवास में जाना पड़ा। लेकिन युधिष्ठिर ने दुर्योधन से बदले की भावना फिर भी नहीं की। युधिष्ठिर का क्षमाभाव देखकर सभी भाई भी शान्त हो गए।
जिन महापुरुषों के गार्हस्थ्य जीवन में ऐसी गंभीरता और क्षमाभाव हो, उनके मुनि बन जाने पर तो उस क्षमा