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पुद्गल परमाणुओं का इकट्ठा होकर रहना भी होता है। उन एकत्रित हुए परमाणुओं का पिण्ड स्कन्ध कहलाता है। पुद्गल के एक सिंगल परमाणु का तो मात्र एक प्रदेश होता है। चूंकि इसका मात्र एक प्रदेश है इसलिए सिद्धान्त में इसे प्रदेश रहित कहा जाता है।
जो स्कन्ध हैं वे तीन प्रकार के होते हैं- संख्यात प्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध और अनन्त प्रदेशी स्कन्ध । बहुतायत में जो कुछ भी पुद्गल हमें दिखने में आता है वह असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। जैसे हमारा शरीर औदारिक शरीर है। इस औदारिक शरीर में भी असंख्यात प्रदेश होते हैं। वैक्रियक शरीर और आहारक शरीर में भी असंख्यात गुणे, असंख्यात गुणे प्रदेश होते हैं परन्तु रहते तो असंख्यात प्रदेश हैं। अर्थात् ये तीनों शरीर असंख्यात पुद्गल परमाणुओं का पिण्ड है। तैजस और कार्मण शरीर अनन्त प्रदेशी होते हैं। ये दोनों शरीर आत्मा में निरन्तर बंधे रहते हैं इन्हें अनन्त प्रदेश वाले कहा है।
धर्म द्रव्य जीव, पुद्गलों की गति में सहायक होता है। जो गति कर रहे हैं उन्हीं की गति में सहायक होता है सबकी नहीं। जैसे पटरी रेलगाड़ी के चलने में सहायक है। अधर्म द्रव्य ठहरे हुए जीव, पुदगलों को ठहरने में सहायक होता है जैसे रुके हुए पथिक को छाया सहायक होती है।
ये दोनों ही द्रव्य एक हैं, अखण्ड हैं, पूरे लोकाकाश में तिल में तैल की तरह फैले हैं। इसलिए इनके प्रदेशों की संख्या भी लोकाकाश के बराबर है। अर्थात् धर्म द्रव्य के और अधर्म द्रव्य के प्रदेशों की संख्या असंख्यात है। ये सभी असंख्यात प्रदेशी द्रव्य हैं।
आकाश द्रव्य सभी द्रव्यों को स्थान देता है। आकाश में भी लोकाकाश में ही संसारी और मुक्त आत्माएँ रहती हैं।
काल द्रव्य सभी द्रव्यों का परिणमन कराने में निमित्त है। यह काल द्रव्य एक प्रदेशी अणु की तरह हैं। प्रत्येक कालाणु एक स्वतन्त्र द्रव्य है। असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाण व्यवस्थित है। रत्नों की राशि के समान ये कालाणु असंख्यात संख्या में स्थित हैं।
इस तरह छह द्रव्यों का यथार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शन के लिए कारणभत है।
इन्हीं छह द्रव्य में काल द्रव्य को छोड़कर पाँच द्रव्यों को पाँच अस्तिकाय कहते हैं। जो अस्ति रूप हों और काय रूप भी हों वह अस्तिकाय हैं। अस्ति रूप तो सभी द्रव्य होते हैं किन्तु काय रूप सभी नहीं हैं। अस्ति अर्थात् जिनका अस्तित्व है। काय अर्थात् बहुप्रदेशी । काय शरीर को या पिण्ड को कहते हैं। जिनका अस्तित्व है और बहुत प्रदेश भी हैं ऐसे द्रव्य पंचास्तिकाय हैं। काल का एक ही प्रदेश होता है। कालाणु में अन्य कालाणु से मिलकर एक रूप होने की क्षमता भी नहीं होती है इसलिए कालाणु एक प्रदेशी है। पुद्गल परमाणु में स्कन्ध बनने की क्षमता होती है। इसलिए उसे अस्तिकाय में लेते हैं।