________________ शुभोपयोग के ये क्षण उत्कृष्ट प्रशस्त भावों से गुजरते हुए शुद्धोपयोग को स्पर्श करने में सहायक हुए हैं। आचार्य गुरुदेव के चरणों में 11 फरवरी 1998 को दीक्षा धारण करके गुरु वात्सल्य की अद्भुत छाया में इस आत्मा ने भव सन्तापित मन को अतीव शान्ति के प्रसाद से भर लिया। 19 मई 2007 को पावन सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी के लिए गुरु चरणों से दूर होकर 2010 में बीनाबारहा में विराजमान गुरु चरणों में पुनः आते समय महावीर जयन्ती के बाद बण्डा(सागर) के शान्तिनाथ जिनालय में दोपहर सामायिक के उपरान्त सोलह कारण भावनाओं को मूल प्राकृतगाथा में 1 अप्रेल 2010 से लिखना प्रारम्भ किया। तदुपरान्त गुरु चरणों में पहुँचकर 13 दिन तक गुरु सान्निध्य के साक्षात् प्रभाव से आत्मा के सामायिक चारित्र सम्बन्धी लब्धिस्थानों को बढ़ाकर पुनः गमन करते हुए सहजपुर, तेंदुखेड़ा(राजमार्ग) से होकर करेली के अल्प प्रवास में 27 जून 2010 को 130 प्राकृतगाथा मात्र लिखने का यह कार्य पूर्ण हुआ। 2010 ई. का वर्षायोग नरसिंहपुर में सम्पन्न हुआ। तदुपरान्त 2011 ई. के घंसौर(सिवनी) वर्षायोग में इस ग्रन्थ का अन्वयार्थ, भावार्थ लिखने का भाव हुआ, ताकि हिन्दी भाषी समस्त भव्य जीवों के लिए भी यह ग्रन्थ स्वाध्याय में सहायक हो। उस दिन एक अदभुत संयोग 11-11-2011 का था। तदुपरान्त यथासमय इस कार्य को गति मिलती रही। 'बरेला' नगर में ग्रीष्म प्रवास के समय तक यह कार्य चलता रहा। सभी गाथाओं का पद्यानुवाद करने का भाव भी हुआ सो वह भी पूर्ण हो गया। इस तरह मूल प्राकृतगाथा, उनका हिन्दी में पद्यानुवाद, अन्वयार्थ और भावार्थ के साथ यह ग्रन्थ श्रुतपंचमी 26-5-2012 को 'बरेला' में परिसमाप्त हुआ। सोलहकारण भावना' से सम्बन्धित यह ग्रन्थ सभी भव्य जीवों को अपार पुण्य की प्राप्ति कराके उन्हें जिनेन्द्र भगवान् के गुणों की सम्पत्ति से भर दे, इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ परम पूज्य आचार्य श्री गुरुदेव के कर कमलों में समर्पित उन्हीं के ज्ञान-विद्या-वारिधि-सम्प्राप्त-लेशशब्द-शिल्पाकृतिरचना 'तित्थयर भावणा'। श्रुतपंचमी 26-5-12 बरेला( जबलपुर) (म.प्र.)