Book Title: Titthayara Bhavna
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Unknown

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Page 181
________________ हम विचार करें कि ऐसी एकान्त मान्यता से तो भक्ष्य, अभक्ष्य का विचार, सदाचार कैसे पालन होगा और कैसे उसकी रक्षा हो सकेगी। व्यवहार मोक्षमार्ग को माने बिना व्रत, समिति, गुप्ति, अनुप्रेक्षा और परीषहजय आदि का मतलब नहीं होगा । व्यवहार को सर्वथा हेय और अभूतार्थ मानने पर समस्त मूलाचार आदि ग्रन्थ अप्रयोजनीय सिद्ध होंगे। इसलिए कारण-कार्य व्यवस्था को समझकर उभय मार्ग पर चलकर मार्ग प्रभावना करना चाहिए । कर्म के उदय में जो होना है, वह तो हमें दिखता नहीं है। यदि कर्म का उदय दिखता होता तो हम निश्चिन्त होकर भले ही बैठ सकते हैं। कर्म का उदय एक जैसा नहीं होता है। कर्म के उदय अनुभाग के अनुरूप फल देते हैं। इन अनुभागों का उदय असंख्यात लोक प्रमाण है । द्रव्य से द्रव्यान्तर होने पर, क्षेत्र से क्षेत्रान्तर होने पर, काल से कालान्तर होने पर और भाव से भावान्तर होने पर कर्म के उदय में कथंचित् परिवर्तन होते हैं । कर्म की उदय और उदीरणा में परिवर्तन भावों के निमित्त से होता है। कर्म के संक्रमण, अपकर्षण आदि क्रियाओं से क्या फल मिलने वाले हैं, उन फलों के परिवर्तन को देखकर कर्म क्रियाओं से क्या फल मिलने वाले हैं यह हम नहीं जानते हैं किन्तु उन फलों के परिवर्तन को देखकर कर्म परिवर्तन का अनुमान लगाया जाता है। कर्म के उदय में कार्य अपने आप होगा, इस एकान्त से हम भाग्यवादी बन जाएँगे। जो होना है वह ही होगा, ऐसी सोच से हम अकर्मण्य बन जाएँगे। पुरुषार्थ के बिना कर्मों का अपकर्षण, कर्मों की गुणश्रेणी निर्जरा कभी सम्भव नहीं है। संवर, निर्जरा के बिना मोक्ष त्रिकाल में सर्वथा असम्भव है। इसलिए मोक्ष पुरुषार्थ कहा है, मोक्ष भाग्य नहीं कहा है। पुरुषार्थ करने का एक पौराणिक उदाहरण द्रष्टव्य है एक दिन पोदनपुर में एक साधारण मनुष्य आया । उसने राज्य सभा में पहुँचकर घोषणा की- हे राजन् ! आज से सातवें दिन पोदनपुर के राजा के मस्तक पर वज्रपात होगा । इसलिए प्राणरक्षा का योग्य उपाय करें । राजा ने उस व्यक्ति के निमित्तज्ञान की परीक्षा ली। उसके निमित्तज्ञान को सही समझकर राजा चिन्तित हो उठा। उसने मन्त्रियों बुलवाया तथा यह समाचार कह सुनाया । एक मन्त्री ने कहा- राजन् ! चिन्ता की काई आवश्यकता नहीं है। मैं एक लौह मंजूषा में आपको सुरक्षित करके समुद्र में प्रवाहित कर दूँगा । दूसरा मन्त्री बोला- महाराज को विजयार्ध की गुफा में क्यों न सुरक्षित रखा जाय? इन युक्तियों को सुनकर एक अन्य मन्त्री ने कहा- राजन् ! मुझे एक सुन्दर कथा का स्मरण हो आया है, उसके आधार पर मेरी युक्ति यह है कि- 'निमित्त ज्ञानी ने कहा है कि- पोदनपुर के राजा के ऊपर वज्रपात होगा। किसी विशेष व्यक्ति पर नहीं ।' मेरी राय है कि आगामी सात दिन पर्यन्त तक किसी अन्य को राजा बनाकर सिंहासन पर बैठा देना चाहिए । यह युक्ति शेष मन्त्रियों को भी उचित लगी। सभी ने सर्वसम्मति से राजसिंहासन पर राजा का प्रतिबिम्ब रख दिया। सब ने उसी को 'पोदनपुर का राजा' ऐसी मान्यता एवं उसी मूर्ति को नमस्कार भी करने लगे । पोदनपुर के राजा श्रीविजय धर्मसाधन में निमग्न हो गये । राजा ने निर्धनों को दान दिया। मन्दिरों में शांतिपाठ करवाया। सर्वत्र प्रजाजन पूजा आदि कार्यों में संलग्न हो गए। धीरे-धीरे सप्तम दिवस भी आ गया । निमित्तज्ञानी के अनुसार बिजली राजा के प्रतिबिम्ब पर गिरी । जब समस्त उपद्रव शान्त हो गया तो नगर वासियों ने बहुत धूमधाम से उत्सव मनाया। उस निमित्तज्ञानी को सौ गाँव उपहार में देकर पद्मिनीखेट नाम का क्षेत्र भी दिया।

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