Book Title: Tattvarthadhigam Sutra Pancham Adhyaya Vivechan
Author(s): Vikramsuri, Naypadmashreeji
Publisher: Shrutnidhi

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Page 9
________________ अनुक्रमणिका १७१ २०९ પ્રસ્તાવના 3। परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ ५-२१॥ १४१ આશીર્વચન | वर्तना परिणामः क्रियाअजीवकाया धर्माऽधर्मा परत्वापरत्वे च कालस्य ॥ ५-२२ ॥ १४५ ऽऽकाशपुद्गलाः ॥ ५-१ ॥ स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः द्रव्याणि जीवाश्च ॥ ५-२॥ पुद्गलाः ॥ ५-२३॥ १६६ नित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥ ५-३ ॥ | शब्द-बन्ध-सौक्ष्य-स्थौल्यरूपिणः पुद्गलाः ॥ ५-४ ॥ संस्थान-भेद-तमश्छायाआकाशादेकद्रव्याणि ॥ ५-५॥ ऽतपोद्योतवन्तश्च ॥ ५-२४ ॥ निष्क्रियाणि च ॥ ५-६॥ अणवः स्कन्धाश्च ॥ ५-२५ ॥ असङ्ख्येयाः प्रदेशा सङ्घातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ ५-२६॥ २१७ धर्माधर्मयोः ॥ ५-७॥ भेदादणुः ॥ ५-२७॥ २३७ जीवस्य ॥ ५-८॥ भेदसङ्घाताभ्यां चाक्षुषाः ॥ ५-२८॥ २४० आकाशस्यानन्ताः ॥ ५-९॥ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ॥ ५-२९॥ २४९ सङ्खयेयाऽसङ्ख्येयाश्च तद्भावाव्ययं नित्यम् ॥ ५-३०॥ ३५० अर्पिताऽनर्पितासिद्धेः ॥ ५-३१ ।।. पुद्गलानाम् ॥ ५-१०॥ ३६१ नाणोः ॥ ५-११॥ स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः ॥ ५-३२ ॥ ५२६ लोकाकाशेऽवगाहः ॥ ५-१२ ॥ न जघन्यगुणानाम् ॥ ५-३३ ।। ५३१ धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥ ५-१३ ॥ गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ५-३४ ॥ एकप्रदेशादिषु भाज्य: व्यधिकादिगुणानां तु ॥ ५-३५ ॥ बन्धे समाधिको पुद्गलानाम् ॥ ५-१४ ॥ असङ्ख्येयभागादिषु पारिणामिकौ ॥ ५-३६ ।। जीवानाम् ॥ ५-१५॥ गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ॥ ५-३७ ॥ प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां कालश्चेत्येके ॥ ५-३८॥ ५५३ प्रदीपवत् ॥ ५-१६॥ सोऽनन्तसमयः ॥ ५-३९ ॥ ५६७ गतिस्थित्युपग्रहो द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ५-४०॥ धर्माधर्मयोरुपकारः ॥ ५-१७॥ ५७५ तद्भावः परिणामः ॥ ५-४१ ॥ आकाशस्यावगाहः ॥ ५-१८॥ ५७९ ११६ अनादिरादिमांश्च ॥ ५-४२ ॥ शरीर-वाङ्-मन:-प्राणापानाः रूपिष्वादिमान् ॥ ५-४३॥ पुद्गलानाम् ॥ ५-१९ ॥ योगोपयोगौ जीवेषु ॥ ५-४४ ॥ ५८३ सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ॥ ५-२०॥ १३२ | परिशिष्ट-१ ૫૮૭ ५३५ ५३९ ५४६ ५४९ ५७१ १०६ ५८० १२४

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