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वचनामृत १ आ तो बखर सिद्धात मानजो के सयोग, वियोग, सुख दुख, ग्वेद, आनद, अणराग, अनुराग इत्यादि योग कोई व्यवस्थित कारणने लईने रह्या छ २ एकात भावी के एकात यायदोषने समान न आपजो ३ कोईनो पण समागम करवा योग्य नथी छता ज्या सुधी तेवी दशा न थाय त्या सुधी सत्पुरुपनो समागम
अवश्य सेववो घटे छे ४ जे कृत्यमा परिणामे दुस छे तेने ममान आपता
प्रथम विचार करो ५ कोईने अतकरण आपशो नही, आपो तैनाथी भिन्नता
राखशो नही, भिन्नता राखो त्या अत करण आप्यु तन माया समान छ ६ एक भोग भोगवे छे छता कमनी वृद्धि नथी फरतो, अने एव भोग नयी भोगवतो छता धमनी वृद्धि परे
छ ए आश्चयकारण पण समजवा योग्य मपा छे ७ योगानुयोगे बनेलु कृत्य घड सिद्धिने आपे छे