Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 223
________________ २१५ एकपणु पामया योग्य नथी प्रणे बाळ जड जहभावे, अने चेतन चेतनभाव रहे एवो वयनो जुदो जुदो द्वतभाव प्रसिद्ध ज अनुभवाय छ ५८ आस्मानी ना आत्मा आप पोने परे जे शकानो परनार छ तेज आत्मा छे ते जणाती नयी, ए __ माप न थई शने एवं आश्चय छे । ५९ आत्माना होवापणा विर्य मापे जे जे प्रकार वह्या तेनो अतरमा विचार करवायो सम्भव धाय छ ६. पण बीजी एम का धाय छे, के आत्मा छे तो पण ते अविनाश एटले निय नथी, प्रणे बाळ होय एवो पाथ नयी, माय दहना मयोगयी उत्पन पाय, अने वियोगे विनाश पामे ६१ अथवा वस्तु क्षणे क्षणे बदलाती जोवामा आवे छ, तैथी सब वस्तु क्षणिय छ, भने अनुभवथी जोता पण आस्मा नित्य जणातो नदी ६२ देह मात्र परमाणुनो सयोग छ, अथवा सयोगे रो आत्माना सबधमा छ वळी त देह जड छ, रुपी छ,

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