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२२६ ९४. ब्राह्मणादि कई जातिमा मोक्ष छ, अथवा कया वेपमा मोभ छे, एनो निश्चय पण न बनी शके एवो छे, केमके तेवा घणा भेदो छ, बने ए दो पण मोक्षनो उपाय प्राप्त थवा योग्य देखातो नयी
९५ तेथी एम जणाय छे के मोक्षनो उपाय प्राप्त घई शके एव नथी, माटे जीवादितु स्वरूप जाणवायी पण शु उपकार थाय ? अर्थात् जे पदने अर्थे जाणवा जोईए ते पदनो उपाय प्राप्त थवो अशक्य देखाय छे.
९६. आपे पाचे उत्तर कह्या तेथी सर्वांग एटले बधी रीते मारी शकानुं समाधान थयु छ, पण जो मोक्षनो उपाय समजु तो सद्भाग्यनो उदय-उदय थाय ! अत्रे 'उदय' 'उदय' वे वार शब्द छे, ते पाच उत्तरना समाधानथी घयेली मोक्षपदनी जिज्ञासानु तीव्रपणुं दर्शावे छ
९७. पाचे उत्तरनी तारा आत्माने विषे प्रतीति थई छे, तो मोक्षना उपायनी पण ए ज रीते तने सहजमा प्रतीति थशे अत्रे 'थशे' अने 'सहज' ए वे शब्द सद्गुरुए कहा
छे ते जेने पाचे पदनी शका निवृत्त थई छे तेने मोक्षोपाय - समजावो कई कठण ज नथी एम दर्शाववा, तथा शिष्यतु