Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 253
________________ 245 निविवारी, सच्चिदानदस्वरूप, सहजानदी, अनतज्ञानी, अनतदशी अने त्रैलोक्यप्रकाशक छो हु मात्र मारा हितने अर्थे तमारी साक्षीए क्षमा चाहु छु एक पळ पण तमारा कहेला तत्वनी सका न थाय, तमारा पहेला रस्तामा अहोरात्र हुरहु ए ज मारी आकाक्षा अने वृत्ति पाओ! हे सवन भगवान | तमने हु विपशु बहु ? तमाराथी कई अजाण्यु नथी मात्र पश्चातापथी हु बमजय पापनी क्षमा इच्छु छ a আবি রাবি থারি

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