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(५०) मोहमयीथी जेनी अमोहपणे स्थिति छ, एवा श्री ना यया.
'मनने लाने आ वधु छे एवा जे अत्यार सुधीनो थयेलो निणय लथ्यो, ते सामाय प्रकारे तो यथातथ्य छ तथापि 'मन , 'तेने लईने' बने 'आ वधु', अने तेनो निर्णय' एवा जे चार भाग ए वापयना पाय छे, ते घणा काळना बोधे जैम छे तम समजाय एम जाणीए छोए जेने ते समजाय छे, तेने मन वश धर्ने छ, यत छ, ए वात निश्चयरूप छ, तथापि न पततु होय चोपण ते आत्म स्वरपने विपेज वर्ते छ ए मन यश थवानी उत्तर उपर रख्यो छे, ते सवथी मुख्य एवो लख्यो छ जे वाक्य रखवामा माल्या छे ते घणा प्रकारे विचारवाने योग्य छ
महात्मानो देह वे कारणने लईने विद्यमानपणे ते छे प्रारप कम भोगववाने अर्धे जीवोना पल्याणने अर्षे, तथापि ए बनेमा ते उदासपणे उदय आवेली वतनाए यतें छे, एम जाणीए छोए