Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 238
________________ २३० दर्गाववाने के क्वचित् ते साधन अधूरा रह्यां तेथी, अथवा जघन्य के मध्यम परिणामनी धाराथी आराधन थया होय, तेथी सर्व कर्म क्षय थई न शवावाथी वीजो जन्म थवानो संभव छे; पण ते बहु नही; वह ज अल्प. 'समकित आव्या पछी जो वमे नही, तो घणामा घणा पंदर भव थाय, एम जिने का छे, अने 'जे उत्कृप्टपणे आराधे तेनो ते भवे पण मोक्ष थाय'; अत्रे ते वातनो विरोध नथी १०६ हे शिष्य । तें छ पदना छ प्रश्नो विचार करीने पूछ्या छे, अने ते पदनी सर्वांगतामा मोक्ष मार्ग छे, एम निश्चय कर अर्थात् एमानु कोई पण पद एकात के अविचारथी उत्यापता मोक्षमार्ग सिद्ध थतो नथी १०७ जे मोक्षनो मार्ग कह्यो ते होय तो गमे ते जाति के वेषथी मोक्ष थाय, एमा कई भेद नथी. जे साधे ते मुक्तिपद पामे, अने ते मोक्षमा पण वीजा कशा प्रकारनो ऊंचनीचत्वादि भेद नथी, अथवा मा वचन कह्या तेमा बीजो कई भेद एटले फेर नथी __ १०८. क्रोधादि कपाय जेना पातळा पड्या छ, मात्र आत्माने विपे मोक्ष थवा सिवाय बीजी कोई इच्छा

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