Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 244
________________ पण तयारूप निश्चय लक्षमा राखी साधन करीने ते निश्चयस्वरूप प्राप्त करवु १३२ अत्रे एकाते निश्चयनय कह्यो नथी, अथवा एकाते व्यवहारनय कह्यो नधी, वेय ज्या ज्या जेम घटे तेम साथे रह्या छे. १३३ गच्छ मतनी कल्पना छे ते सद्व्यवहार नथी, पण आत्मार्थीना लक्षणमा कही ते दशा अने मोक्षोपायमा जिज्ञासुना लक्षण आदि कह्या ते सद्व्यवहार छे, जे अत्रे तो सक्षेपमा कहेल छ पोताना स्वरूपतु भान नर्थी, अर्थात् जेम देह अनुभवमा आवे छे, तेवो आत्मानो अनुभव थयो नथी, देहाध्यास वर्ते छे, अने जे वैराग्यादि साधन पाम्या विना निश्चय पोकार्या करे छे, ते निश्चय सारभूत नथी. १३४. भूतकाळमा जे ज्ञानीपुरुषो थई गया छे, वर्तमानकाळमा जे छ, अने भविष्यकाळमा थशे, तेने कोईन मार्गनो भेद नथी, अर्थात् परमार्थे ते सौनो एक मार्ग छ, अने तेने प्राप्त करवा योग्य व्यवहार पण ते ज परमार्थसाधकरूपे देशकाळादिने लीधे भेद कहो होय छता एक फळ उत्पन्न करनार होवाथी तेमा पण परमार्थ भेद नथी.

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