Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 232
________________ २२४ मध्यस्थिति, एम द्रव्यनो विशेष स्वभाव छे. अने ते आदि हेतुथी ते ते भोग्यस्थानक होवा योग्य छ हे शिष्य ! जड चेतनना स्वभाव सयोगादि सूक्ष्मस्वरूपनो अने घणो विचार समाय छे, माटे आ वात गहन छे, तोपण तेने साव संक्षेपमा कही छ ८७ कर्ता भोक्ता जीव हो, पण तेथी तेनो मोक्ष थवा योग्य नथी, केमके अनत काळ थयो तोपण कर्म करवारूपी दोप हजु तेने विपे वर्तमान ज छे ८८. शुभ कर्म करे तो तेथी देवादि गतिमा तेनुं शुभ फळ भोगवे, अने अशुभ कर्म करे तो नरकादि गतिने विष तेनु अशुभ फळ भोगवे, पण जीव कमरहित कोई स्थळे होय नही ८९. जेम शुभाशुभ कर्मपद ते जीवना करवाथी ते थता जाण्या, अने तेथी तेनु भोक्तापणु जाण्यु, तेम नही करवाथी अथवा ते कर्मनिवृत्ति करवाथी ते निवृत्ति पण थवा योग्य छे, माटे ते निवृत्तिनु पण सफळपणु छे, अर्थात् जेम ते शुभाशुभ कर्म अफळ जता नथी, तेम तेनी निवृत्ति पण अफळ जवा योग्य नथी, माटे ते निवृत्तिरूप मोक्ष छ एम हे विचक्षण! तु विचार.

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