Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 230
________________ ૨૨૨ ७९ जीवने कर्मनो कर्ता कहीए तोपण ते कर्मनो भोक्ता जीव नहीं ठरे, नेमके जड वा पशु रूम्जे के ते फळ देवामा परिणामी थाय ? अर्थात फळदाता थाय ? ८० फळनाताईबर गणीए तो भोक्तापर्ण साधी गकीग, अर्थात् जीवने ईम्बर कर्म भोगवावे तेथी जीव कर्मनो भोक्ता मिट्ट थाय, पण परने फळ देवा आदि प्रवृत्तिवाको ईश्वर गणीए तो तेनु ईश्वरपणु ज रहेतु नथी, एम पण पालो विरोव मावे छे ८१ तेवो फळदाता ईश्वर सिद्ध यतो नथी एटले जगतनो नियम पण कोई रहे नही, अने शुभाशुभ कर्म भोगववाना कोई स्थानक पण ठरे नही, एटले जीवने कर्मनु भोक्तृत्व क्या रह्य ८२ भावकम जीवने पोतानी भ्राति छ, माटे चेतनरूप छे, अने ते भ्रातिने अनुयायी थई जीववीर्य स्फुरायमान थाय छे, तेथी जड एवा द्रव्यकर्मनी वर्गणा ते ग्रहण करे छे ८३ झेर अने अमृत पोते जाणता नथी के अमारे आ जीवने फळ आपवु छे, तोपण जे जीव खाय छे, तेने ते

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