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२२० अथवा परस्वरूपे अवस्थातर नही पामवायोग्य एवं चेतन एटले आत्मा तने भास्यमान थगे.
७१. जीव कर्मनो कर्ता नथी, कर्मना कर्ता कर्म छे अथवा अनायासे ते थया करे छे, एम नही, ने जीव ज तेनो कर्त्ता छ एम कहो तो पछी ते जीवनो धर्म ज छे, अर्थात् धर्म होवाथी क्यारेय निवृत्त न थाय.
७२ अथवा एम नही, तो आत्मा सदा असग छे, अने सत्त्वादि गुणवाळी प्रकृति कर्मनो बघ करे छे, तेम नही, तो जीवने कर्म करवानी प्रेरणा ईश्वर करे छे, तेथी ईश्वरेच्छारूप होनाथी जीव ते कर्मथी 'अवध' छ।
___७३ माटे जीव कोई रीते कर्मनो कर्ता थई शकतो नथी, अने मोक्षनो उपाय करवानो कोई हेतु जणातो नथी, का जीवने कर्मन कपिणु नथी अने जो कपिणु होय तो कोई रीते ते तेनो स्वभाव मटवा योग्य नथी.
७४ चेतन एटले आत्मानी प्रेरणारूप प्रवृत्ति न होय, तो कर्मने कोण ग्रहण करे ? जडनो स्वभाव प्रेरणा नथी, जड अने चेतन बेयना धर्म विचारी जुओ
७५. आत्मा जो कर्म करतो नथी, तो ते थता नथी;