Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 226
________________ समुद्र पलटातो नथी, मान मोजा पलटाय छे, तेनी पेठे.) जेम बाळ. यान अने वृद्धावण अवस्था छ, ते आत्माने विभावची पर्याय , अने बाळ अवस्था वर्नता आत्मा बालक जणातो, ते बाळ अवम्या छोटी प्यारे युवावस्था ग्रहण करी न्यारे युवान जणायो, अने युवावस्या तजी वृद्धावस्था ग्रहण करी त्यारै वृद्ध जणायो. ए त्रगे अवस्यानो भेद थयो ते पर्यायभेद छे, पण ते प्रणे अवस्थामा आत्मद्रव्यनो भेद थयो नहीं, अर्थात् अवस्थाओं वदलाई पण आत्मा बदलायो नयी मात्मा ए त्रणे अवस्थाने जाणे छ, भने ते अणे अवस्थानी तेने ज स्मृति छे गे अवस्थामा आत्मा एक होय तो एम बने, पण जो आत्मा क्षणे क्षणे वदलातो होय तो तेवो अनुभव वने ज नही ६९ वळी अमुक पदार्थ क्षणिक छ एम जे जाणे छे, अने क्षणिकपणं कहे छे ते कहेनार अर्थात् जाणनार क्षणिक होय नही; केमके प्रथम क्षणे अनुभव थयो तेने वीजे क्षणे ते अनुभव कही शकाय, ते वीजे क्षणे पोते न होय तो क्याथी कहे ? माटे ए अनुभवथी पण आत्माना अक्षणिकपणानो निश्चय कर

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