Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 227
________________ २१९ ___७० बळी पोई पर यरतुना का पण पाळे मेवळ सो नाग पाप ज TTI, मात्र अवस्यातर धाग, माटे चेतनना पण मेवर ना। पाय नहीं पा अपस्यौतररूप ना पता होय सा से पेमा भळे, अपया गया प्रसार अवस्थावर पामे त तपाग अमात पयदि पार्ष फूटा जाप छ, एट ला एम पहछे पे पहा ना पाग्या छ, कई माटीपणु नाश पाम्पु पी त छिनमितपई जई गूधममा गृहम भूया पाय, तापग परमाणुगमूहम्लग रहे, पण पेय नागन थाय अने तानु न परमाणु पण घरे नहीं, येमये अनुभवया जाता अवस्थांतर पई पाये, पण पाथनो ममळगा ना पाय एग मासा ज शनवा योग्य नयी एटले जो तु तानो पहे, तो पण केवळ नाग ता कही जवायाय नही, अवस्यावर म्ल्प ना कहेयाय जेम घट फूटी जई प्रमेकरी परमाणु ममूहरूपे स्थितिमा रहे, तम घेतनना अवम्यातरम्प ना। तारे महेवा होय तो त नी स्थितिमा रहे अथवा घटना परमाणुओ जेम परमाणुसमूहमा भळ्या तम चता पई घस्तुमा भगवा योग्य छ से सुपास अर्थात् ए प्रकारे तु ____ अनुभव करा जाईवा कोईमा नही भळी शक्या योग्य

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