Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 229
________________ तेथी सहज स्वभावे एटले अनायासे ते थाय एम कहे घटतु नथी, तेमज ते जीवनो घम पण नही कैमके स्वभावनो नाश थाय नहीं, अने आत्मा न करे तो श्म थाय नहीं एटले ए भाव टळी शव छ, माटे ते आरमानो स्वाभाविक धम नहा ७६ केवळ जो अमग होत अर्थात च्यारे पण तेने वमनु करवाएणु न होत तो तने पोताने ते आत्मा प्रथमथी केम न भासत ? परमार्थधी त यात्मा असग छ, पण ते तो ज्यारे स्वर पनु भान थाय त्यारे थाय ७७ जगतनो अथवा जावाना कमनो ईश्वर कर्ता कोई छे नहीं, शुद्ध आत्मस्वभाव जेनी थयो छे ते ईश्वर छे, अन तने जो प्रेरक ण्टर क्म गणीए तो तेने दोषनो प्रभाव थया गणावा जोईए, माटे ईश्वरनी प्रेरणा जीवना कर्म करवामा पण कवाय नही ७८ आत्मा जो पोताना शुद चत यादि स्वभावमा पर्ने हो त पाताना त ज स्वभावनो वर्ता छ, अर्थात तेज स्वम्पमा परिणमित छ, अन ते शुद्ध चत यादि स्वभावना भानमा वततो न होय त्यार कमभावनो पर्ता छ

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