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२१४ ५४. जाग्रत, स्वप्न अने निद्रा ए अवस्थामा वर्ततो छतां ते ते अवस्थामोथी जुदो जे रह्या कर छे, अने नेते अवस्था व्यतीत थये पग जेन होवापशु छे, बने ते ते अवस्थाने जे जाणे हे, एवो प्रगटम्बन्ध चैतन्यमय छे, अर्यात जाण्या न करे छे एवो जेनो स्वभाव प्रगट छ, बने ए तेनी निशानी मदाय वा छे कोई दिवस ते निनानीनो भंग पत्तो नयी.
५५ घट, पट आदिने तुं पोते जाणे छे, 'तै छ' एम तुं माने छ, अने जे ते घट, पट बादिनो जाणनार छे तेने मानतो नथी; ए जान ते केवु क्हे ?
५६ दुर्वळ देहने विपे परम वृद्धि जोवामा आवे छे, अने स्थूल देहने विपे थोडी वृद्धि पण जोवामां आवे छे, जो देह ज आत्मा होय तो एवो विकल्प एटले विरोध थवानो वखत न आवे.
५७ कोई काळे जेमां जाणवानो स्वभाव नथी ते जड, अने सदार जे जाणवाना स्वभाववान छे ते चेतन, एवो वेयनो केवळ जुदो स्वभाव छ, अने ते कोई पण प्रकारे
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