Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra,
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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२१२ मानवो ते मिथ्या छ, केमके तेनु कशु जुदु घाण एटले चिह्न नथी.
४७. अने जो मात्मा होय तो ते जणाय शा माटे नही ? जो घट, पट, मादि पदार्थों छे तो जेम जणाय छे, तेम आत्मा होय तो शा माटे न जणाय ?
४८ माटे मात्मा छे नहीं, अने मात्मा नथी एटले तेना मोक्षना अर्ये उपाय करवा ते फोकट छे, ए मारा अंतरनी शकानो कई पण सदुपाय समजावो एटले समावान होय तो कहो
४९ देहाच्यासथी एटले अनादिकाळथी अज्ञानने लीधे देहनो परिचय छे, तेथी आत्मा देह जेवो अर्थात् तने देह भास्यो छे; पण आत्मा अने देह 'बन्ने जुदा छे, केमके वेय जुदा जुदा लक्षणथी प्रगट भानमा आवे छे
५० अनादिकाळथी अज्ञानने लीधे देहना परिचयथी देह ज आत्मा भास्यो छे, अथवा देह जेवो आत्मा भास्यो छे; पण जेम तरवार ने म्यान, म्यानरूप लागता छता बन्ने जुदा जुदा छे, तेम आत्मा अने देह बन्ने जुदा
जुदा छे.

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