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"एवी कोई अटपटी दशायी वर्ते छे के जेनु सामा य मनुष्य ने ओळखाण थवु दुलभ छे, एका सत्गुरुपने अमे फरी फरी स्तवीए छीए
एक समय पण केवळ असगपणाधी रहे ए निरोक्ने वश करवा करता पण विवट काय छे, तेवा असगपणाथी विकाळ जे रहा छ, या सत्पुरुपना अत करण, ते जोई अमे परमाश्चय पामी नमीए छीए
हे परमात्मा । अमे तो एम ज मानीए छीए में आ काळमा पण जीवनो मोष होय तेम छता जन प्रथोमा क्वचित् प्रतिपादन थयु छे ते प्रमाणे आ काळे मोक्ष न होय, ता मा क्षत्रे ए प्रतिपादन तु राय, अने अमने मोक्ष आपवा करता सत्पुरुषना ज चरणनु ध्यान करीए अने सनी समीप ज रहीए एवो याग आप
हे पुरुषपुराण ! अमे तारामा बने सत्पुरुपमा पई भद होय एम समजवा नथी, तारा करता अमने तो सत्पुरुप ज विशेष लागे छ, कारण के तु पण तेने आधीन ज रह्यो छ अने अमे सत्पुरुपने ओळख्या विना तने ओळखी शक्या नही, ए ज तारु दुधटपणु अमने सत्पुरुष प्रत्ये प्रेम सपजाव छ कारण के तु वश छता पण तेओ