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१२७ रम्यनु ठेकाणु एव निजस्वरूप जाणी, वदी ते कृताथ थाय छ जे जे पुरुषोने ए छ पद सप्रमाण एवा परम पुरुषना वचने आत्मानो निश्चय थयो छ, त ते पुरुषो सव स्वरूपने पाम्या छे आधि, व्याधि, उपाधि, सव सगथी रहित यया छ, पाय छे, अने भाविनाठमा पण तम ज पशे
जे सत्पुरषोए जम जरा मरणनो ना परवावाळो, स्वस्वरूपमा सहज अवस्थान यवाना उपदेग बह्यो छ, ते सरगुरुपोने अत्यत भत्तिथी नमस्कार छ तेनी निष्कारण करुणाने नित्य प्रत्ये निरतर स्तववामा पण आत्मस्वभाव प्रगटे छे, एवा सव सत्पुरपा तना परणारविंद सदाय हृदयने विपे स्थापन रहो।
जेछ पदयी सिद्ध छ एवं आरमस्वरूप ते जेना पपनने अगाकार मय महजमा प्रगट छे, जे आत्मस्वरूप प्रगटवापी सर्व काळ जीय मपूण आनदन प्राप्त पई निमय पाय छे त बयाना कहनार एका गत्पुरुपना गुणनी ध्यास्या परवाने प्रगति छ, मेमने जैनो प्रयुपारम पई पाम एवा परमात्मभाव त जाण यइ पग इन्टमा पिना मात्र निप्पारण करणागीरतापी आप्पा, एम एता पागे अन्य बीवने दिये था मारोगिय , अपमा