________________
(१) समायान-सद्गुरु उवाच भास्पो देहाध्यारापी, आरमा दह समान, पण त यन्ने भिन्न छे प्रगट सगे भार ४९ भाम्पा दहाम्यागयो, आत्मा देह समान, पग छे बन्ने भिन्न छ, जेम अगि ने म्यान ५० से प्रष्टा ऐ दृष्टियो, पे जाते. रूप, भवाम्य भाभव में रहे, न ऐ जीवस्वम्प ५१ छे इंद्रिय प्रपैरस, निज निज विषमर्नु कान, पाप र पिपया पा धारमाने भा ५२ दे पा सहो, पाणे न टी प्राा, आगामी गगा पर, शह प्रयाँ भाग ५३ सर्व पपरपात पिणे, ग्यारो गा पाग मगर पासमय ए पाग राशप ५४ पर, ५ मा भाग तु, तपो धने पान, मार ने मान महि रहीए मेगा? ५५ परम हिमा, स्पूह मति मन्य, प हो यो मामा, में नाम nिer ५९