Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 213
________________ २०५ १९ जे सद्गुरुना उपदेशथो कोई केवळनानने पाम्पा से सद्गुरु हजु छग्रस्थ रहा होय, तो पण जे देवळज्ञानने पाम्या छ एवा ते केवळोभगवान छमस्थ एवा पोताना सद्गुरुनी वैयावच्च कर २० एयो विनयना माग श्री जिने उपदेश्यो छे ए मागनो मूळ हतु एटले तेथी आत्माने शो उपकार थाय छे ते कोईद सुभाग्य एटले सुलभबोधी अथवा आराघर जीव होय ते समज २ आ विनयभाग बह्यो तैनी लाभ एटले ते शिष्यादिनी पासे कराववानी इच्छा परीने जो कोई पण असद्गुरु पाताने विपे सद्गुरुपणु स्थापे तो ते महामोहनीय कम उपाजन परीने भवसमुद्रमा बूढे २२ जे मोक्षार्यों जाव होय ते आ विनयमादिनी विचार छाजे, अने जे मताी होय ते तेनो अवळो निर्धार के, एटले का पोते तेवो विनय गिध्यादि पासे करावे, अपना असदगुरुने विपे पोते सद्गुरुना धाति रावी आ विनयमार्गनो उपयोग कर

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