Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 215
________________ २०७ पोते खरेबरो टढ मुमुक्षु छे ण्वु मान मुख्यपणे मेळववाने अथें असद्गुरु समीपे जईने पोते तना प्रत्ये पोतानु विशेष दृढपणु जणावे २७ देव-नारकादि गतिना 'भागा' आदिना स्वरूप कोईक विशेष परमार्थहेतुथी कह्या छे ते हेतुने जाण्यो नयो, अने ते भगजाळने श्रुतज्ञान जे ममजे छ, तथा पोताना मतनो वपनो आग्रह रासवामा ज मुक्तिनो हेतु माने छे २८ वत्तिनु स्वरूप शु? ते पण ते जाणतो नथी, अने 'हु व्रतधारी छु' एव अभिमान धारण कयं छे क्वचित परमार्थना उप-शना योग नो तोपण लोकोमा पोतानु मान अने पूजास कारादि जता रहेशे, अथवा ते मानादि पछी प्राप्त नही पाय एम जाणीने ते परमाथने ग्रहण करे नही २९ अथवा 'समयसार' के 'योगवासिष्ठ जेवा प्रयो पाची ते मात्र निश्चयनयने ग्रहण करे केवी रीते ग्रहण कर ? मात्र महेवारूपे, अतरगमा तयारूप गुणनी कशी सराना नही, अने सद्गुरू, सत्गास्म तथा पैराग्य,

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