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पट स्थानक समजावीने मिन बतायो माप, म्यान घरी तरवारवन, ए उपकार अमाप १२७
उपसहार दर्शन घटे समाय छे, मा पद स्थान माही विचारता विस्तारथी, सशय रहे न काई १२८ आत्मभ्राति सम रोग नहि, सद्गुर वंद्य सुजाण, गुरुपाना सम पथ्य नहि औषध विकार ध्यान १२१ जो इच्छो परमाथ तो करा सत्य पुग्पाय, भवस्थिति आदि नाम राई, छेदो नहि आरमाथ १३० निश्चयवाणी साभळी, साधन वजवा नोय, निश्चय राखी रक्षमा, साधन करवा सोय १३१ नय निश्चय पवातथी, आमा नथी कहेल, एकान यवहार नहि, बन्ने साथ रहेल १३२ गच्छमतनी जे कल्पना, ते नहि सद्यवहार, भान नहीं निजम्पनु ते निश्चय नहि सार १२३ आगळ ज्ञाना पई गया, पतमानमा हाय, थाशे पाळ भविष्यमा, मागभेद नहि काय १३४