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जप भेद जपे सपयोंहि तपे, उरसेंहि उदासी ल्ही सबप २ सब शास्त्रनके नय पारी हिये, मत महन खडन भेद लिये, यह साधन बार अनत पियो वदपि कछु हाथ हजुन पर्यो ३ अब धयों न विचारत हमनसे, बधु और रहा उन साधनसें ? दिन सद्गुरु कोय न भेद लहै, मुख ओगल ह यह बात कहे? ४ करना हम पावत है तुमकी, यह मात रही सुगुरु गमकी, पलमें 'प्रगटे मुख बागलसे, जय सद्गुपचन सुप्रेम बसें ५ तनसें, मनमें, धनमें, सबसे, गुरुदयकी भान रवआत्म बसें, राव वारज सिद्ध बने अपनो, रस अमृत पापहि प्रेम धनो ६