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१६६ (२८)
(हरिगीत) जिनवर कहे छे ज्ञान तेने, सर्व भव्यो सामळो. जो होय पूर्व भणेल नव पण, जीवने जाण्यो नही, तो सर्व ते अज्ञान भाख्यु, साक्षी छे आगम अही; ए पूर्व सर्व कह्या विशेपे, जीव करवा निर्मळो, जिनवर कहे छे ज्ञान तेने, सर्व भव्यो साभळो. १ नहि ग्रंथमाही ज्ञान भास्युं, ज्ञान नहि कविचातुरी, नहि मंत्र तंत्रो ज्ञान दाख्या, ज्ञान नहि भाषा ठरी, नहि अन्य स्थाने ज्ञान भाख्यु, ज्ञान ज्ञानीमा कळो, जिनवर कहे छे ज्ञान तेने, सर्व भव्यो साभळो. २ आ जीव ने आ देह एवो, भेद जो भास्यो नही, पचखाण कीधा त्या सुधी, मोक्षार्थ ते भाख्या नही; ए पाचमे अगे कह्यो, उपदेश केवळ निर्मळो, जिनवर कहे छे ज्ञान तेने, सर्व भव्यो सांभळो ३ केवळ नही ब्रह्मचर्यथी," ..." केवळ नही संयम थकी, पण ज्ञान केवळथी कळो, जिनवर कहे के ज्ञान तेने, सर्व भव्यो साभळो. ४
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