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१६९ सयमना हेतुपी योगप्रवर्तना, स्वस्पर जिनमा आधीन जो, से पण क्षण क्षण घटती जावी स्थितिमा, अते थाये निजस्वरूपमा तीन जो अपूर्वक पच विषयमा रागोप विरहितता, पच प्रमादेन मळे मनना क्षोभ जो, द्रव्य, क्षेत्र नेपाळ, भाव प्रतिश्पवण,
विपरख उदयाघी पण वीतलोम जो अपूर्व० ७ द्रोप प्रत्येको बतें झोधस्यमावता,
मान प्ररपे ता दीनपान मान जो, माया प्रत्ये माया सानीमावनी,
शोम प्रस्प नहीं लोम समाा जो यपूर्ण ८ मह रूपसगरी प्रत्य पोप नहीं,
म पनी तपापि न मळे माना, यह पाय पण माया पाप न राममा,
मोम नहीं छो प्रबळ सितिमिलान जो अपूप. १ मनमाय, मुहमार सह अस्नानठा
अटोपन आदि परम प्रसिरमो,