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जे जिनदेह प्रमाण ने, समवसरणादि सिद्धि; वर्णन समजे जिननु, रोको रहे निज बुद्धि. २५ प्रत्यक्ष सद्गुरुयोगमा, वर्ते दृष्टि विमुख, असद्गुरुने दृढ करे, निज मानार्थे मुख्य २६ देवादि गति भगमा, जे समजे श्रुतज्ञान; माने निज मत वेपनो, याग्रह मुक्तिनिदान. २७ ला, स्वरूप न वृत्तिनु, ग्रह्य, व्रत अभिमान; ग्रहे नही परमार्थने, लेवा लौकिक मान. २८ अथवा निश्चय नय ग्रहे, मान शब्दनी मांय; लोपे सद्व्यवहारने, साधन रहित थाय. २९ ज्ञानदशा पामे नही, साधनदशा न काई; पामे तेनो संग जे, ते वूडे भवमाही ३० ए पण जीव मतार्थमा, निजमानादि काज, पामे नहि परमार्थने, अन्-अधिकारीमा ज ३१ नहि कषाय उपशातता, नहि अतर वैराग्य, सरळपणु न मध्यस्थता, ए मतार्थी दुर्भाग्य ३२ लक्षण कह्या मतार्थीना, मतार्थ जावा काज, हवे कहु आत्मार्थीना, आत्म-अर्थ सुखसाज. ३३