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सामान्य मनोरथ
(नया) मोहिनीभाव विनार मपीन पई, ना नोरस नपने परनारी; पथ्यरतुरा गा, परवैभव, निर्मळ तात्विक लोग ममागे! द्वादन व्रत अने दोनता घरी, सात्त्विक थाउं स्वरूप विचारी; ए मुज नेम सदा शुभ क्षेमफ, नित्य असंड रहो भवहारी. १ ते निशलातनये मन चितवी, जान, विवेक, विचार वधाएं, नित्य विगोध करी नव तत्त्वनो, उत्तम बोध अनेक उच्चार सशयवीज ऊगे नही अदर, जे जिनना कथनो अवधारु, राज्य, सदा मुज ए ज मनोरथ, धार, थशे अपवर्गउतारु २