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समजे यमुनिमत जीप, नोरसा सरापोक सदीय ४ घपयुक्त जीव बम सहित, पुद्ग रमना गर्म रापीठ, पुगलमा प्रपम स माग, नर हे पछी पामे प्यारा ५ जा में पगरनो ए देह तापण भोर स्पिति रया छेद, समजण बीजी पछी कहीरा, ज्यार चित्ते स्थिर पई। ६ जहां राग को बढी ट्रेप, वहा रावदा मानो परमा, उदासीनतानो ज्या वास, सकळ दुसनो छे त्या नाश १ सब कालनु छे त्या मान, देह एता त्या छ निर्वाण, भय छवटना छ ए दा, राम धाम बावीने वस्या २
मुबई, फागण व १, १९४६