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ॐ सत
(दोहरा विना नयन पाव नहा, बिना नयनको बात, सेवे सद्गुल्ले चरन सो पावे साक्षात १ चूझी घहत जो प्यासको, ह बूझनकी रीठ, पावे नहि गुरुगम बिना, एही अनादि स्थित २ एही नहि है पल्पा , एही नहीं विभग, पई नर पचमकाळमें, देखी वस्तु अभग ३ नहि ६ तु उपटेकु प्रयम रहि उपदा, सबसें यारा अगम ह धो नानीका देश ४ जप, तप और प्रवादि राब, वहा लगी भ्रमरुप, जहा रगा नहि सतयी, पाई धृपा अनूप ५ पायाकी ए बात है, निज छदनको छोड, पिछे लाग सत्पुरपवे, तो सब पधन तोड ६
मुबई, अपाड, १९४७