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१५७ म्मपहारमें दो दिन, निहयेमें है आप, एहि पचनसे समज ले, मिनप्रवचनकी छाप एहि नहा है पत्पा, एही मही विमग, जय जागंग मातमा तर लागेंग रग
हा नो ११४
(२२) मारग सावा मिल गया, छूट गये संदेह, होता सो तो जर गया, भिन्न क्यिा निज देह समज, पिछे सर सरल है, यिनू समन मुगयील, ये मुशकीली क्या पहु? " खोज पिंड ब्रह्माडका, पत्ता तो लग जाय, पेहि ब्रह्मादि यासना, जब जावे तय आप आप भूल गया, इनसे क्या अपर? समर समर भय हसत हैं, नहि भूलेंगे फेर जहा फ्लपना-जल्पना, तहा मानु पुस छाई, मिटे कलपना-जापना, तब वस्तू तिन पाई