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परम निश्चयम्प जणावा योग्य छ, तेनो सर्व विभाग विस्तार थई तना आत्मामा विवेक या योग्य छे. आछ पद अत्यंत नदेहरहित छे, एम परमपुर निरूपण कयु छ एछ पदनो विवे जीवन स्वस्वल्प समजवान अर्षे कहो छे अनादि स्वप्नदगाने ली स्त्पन्न थयेलो एवो जीवनी अहंभाव, ममत्वभाव ते निवृत्त यवाने अर्थ आ छ पदनी ज्ञानीपुस्पोए देशना प्रकानी छे. ते स्वप्नदयाथी रहित मात्र पोतानु स्वरूप छे, एम जो जीव परिणाम करें, तो सहजमात्रमा ते जागृत घई सम्यकदर्शनने प्राप्त थाय; सम्यकदर्शनने प्राप्त थई स्वस्वभावरूप मोक्षने पामे. कोई विनाशी, अशुद्ध अने अन्य एवा भावने विषे तेने हपं, शोक, सयोग उत्पन्न न थाय ते विचारे स्वस्वरूपने विषे ज शुद्धपणं, सपूर्णपण, अविनाशीपणु, अत्यत आनंदपणु, अंतररहित तेना अनुभवमा आवे छे. सर्व विभावपर्यायमा मात्र पोताने व्यासपी जैक्यता थई छे, तेथी केवळ पोतानुं भिन्नपणु ज छ, एम स्पष्ट-प्रत्यक्ष-अत्यंत प्रत्यक्ष-अपरोक्ष तने अनुभव थाय छे विनाशी अथवा अन्य पदार्थना सयोगने विपे तेने इष्टअनिष्टपणुं प्राप्त थतु नयी जन्म, जरा, मरण, रोगादि वाधारहित संपूर्ण माहा