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१२८ भगिनी गाना , टं मागे, और नयी, या जे गएमा नने अगन मतिय माग नमस्कार हो !
मानुषो नामनी गनि निम्मपण परीछ, ने भक्ति मान मियना पल्याणने महो जे भकिने प्राप्त भवानी मारना कारमानी नेष्याने विष वृत्ति रहे, अपूर्व गुण दृष्टिगोचर य. मन्य म्पच्छद मटे जने महे आत्मबोध थाय एम जाणीनं भनित निरुपण गायु छे, ते भक्तिने अने ते मृत्युम्योने फरी फरी निराक नमस्कार हो!
जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमा पोवळजाननो उत्पत्ति पई नथी, पण जेना वचनना विनारयोगे शक्तिपणे नेवळज्ञान छ एम स्पष्ट जाण्यु छे, श्रद्धापणे केवळज्ञान धयु छे, विचारदशाए फेवकशान थयु छे, इच्छादशाए कोवळशान थयु छ, मुन्य नयना हेतुथी केवळनान वत छे, ते केवळज्ञान सर्व अव्यावाध सुखनु प्रगट करनार, जेना योगे सहज मात्रमा जीव पामवा योग्य थयो, ते सत्पुरुपना उपकारने सर्वोत्कृष्ट भक्तिए नमस्कार हो ! नमस्कार हो !!
मुवई, फागण, १९५०